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________________ (१५) जाणवी. नासक कादिकोने स्त्रीनो स्पर्शथवाथी प्रफुलीतथायडे अथवा तामीवक्षनीपासे ताम वृक्ष होय तोज तामी फळे ले फळवाळी थाय ने ए मैथुन संज्ञानासण जाणवा. बोस्व पक्षाशादि वृक्षो नीधान (धन) ना उपर उगे ले अथवा पोताना मु. ळीथा वो नीधानने वींटे नीधाननी अासपास विंटलाय डे ए परिग्रह संज्ञानु लक्षण जाणवू. कोकनद वृक्षने मनुष्यादिकनो पगलागवायी हुंकारा करे ने ए क्रोध संशानुं लक्षण जाणवू. हुं उता था खोको सूखी केमथाय एवा श्रहंकारे करी रुदंती वृक्ष रुदन करे ने कारणके तेथी सुवर्णसिह थाय , ए मानसंज्ञानु सक्षण ने. वेलमी फळने पोताना पांदमा वमे ढांके , ए माया संज्ञाना सकण ने.थति तीन लोजनाउदये जीव धनउपरवृक्षथाय , अथवा को मोटोफणीधर नागथक्ष धननी रक्षा करे जे, ए लोन संझाना नाव जाणवा.बेखमीमार्ग तजी वृक्षने वीटलाय ए उघसंज्ञा, तथा कामी श्रेणीबंध चाखेने, माकम एकदमनासेडे, थने
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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