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________________ एक अपर्याप्तामळीत्रणसेंने त्रण मनुष्यना नेद वाय. दश भुवनपति थार व्यंतर, बाग्वाण व्यंतर, पंदर परमाधामी, दश तिर्यग्जूंनक, पांच चरज्योतिषी, पांच स्थिरज्योतिषी, नवसोकांतिक, त्रणकिस्विषिया, बार देवखोक, नवग्रैवेयक तथा पांच श्रनुत्तरविमानना मळीने नव्वाणुं तेने पर्याप्ता अने अपर्याप्ता गवतां एकसोने अहाणु नेद देवताना थाय. एवी रोते चौद नारकीना, अमतालीस तिर्यंचना, ऋणशेने त्रण मनुप्यना अने एकसाने यहाणुं देवताना मळी सर्व संसारी जीवोना पांचसेंने त्रेशन द कहां हैं, पृथ्वीकायना दंगके चार, थपकायना दमके चार, तेउकायना दंमके चार, वाकायना दंगके चार तथा वनस्पतिकायना दंमके उ जीवनेद जाणवा, वे इंडियना दंगके बे, तेइंडियना दमके थे, चौरिजिय ना दंमके ये अने तिर्यंच पंचेंजियना दंगके वीश जीवनेद कहां . मनुष्यना दंमके त्रणसें नेत्रण ने तेर देवताना दमके एकसोने बहाएं जीवनेद पामीए. ॥ इति जीवनेद धार ॥
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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