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________________ तनोदधि विगेरेना पाणी ते सर्व बादर अपकायना नेदो जाणवां, ॥ एवं तेर दंमक ॥ तेऊकाय श्रमिना जीवोनो एक दमक. तेना सुदमने बादर एवा बे नेद , सुक्ष्म ते पूर्वोक्त रीते जाणवा ने बादर ते अंगारानोअग्नि ज्वालानो अ. ग्नि, नरसामयनो अग्नि, उक्कापातनो अग्नि, कणीबानो अग्नि, असनी(घसारार्थी अग्नि उत्पन थाय डे ते जेवा के लो? चकमक अरणी वगेरे घसवाथी अग्नि पेदा थाय ते),अने विजळी विगेरे बादर अग्नि कायना नेदो . ॥ एवं चौद ॥ वाऊकाय-चायराना जीवोनो एक दंडक. ते वायु कायना सुदमने बादर एवा बे नेद . तेमा सुदम ते पूर्वोक्त रीते जाणवा अने बादरते उद्घामक(उंचे चमतो) वायु, उत्कलिक (निचे पमतो) वायु मंकळीक (वंटोळी) वायु, महा (मोटो-जे आंधी कहेवाय ते) वायु, शुइ(सुखकारी कीणो) वायु, एंज ( घुघुवाट करतो ) वायु, धनवायु अने तन
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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