SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपाध्याय विनयविजय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व 17 पुरुष की ७२ कलाएँ, स्त्री की ६४ कलाएँ, श्रेयांस द्वारा ऋषभदेव का पारणा, माता मरूदेवी की मुक्ति, भरत एवं बाहुबलि का युद्ध आदि । टीका के प्रारम्भ में पांच श्लोकों में तथा अन्त में १८ श्लोकों में प्रशस्ति की गई है । टीका प्रायः गद्यात्मक है कहीं कहीं पद्यों का प्रयोग किया है। इस टीका का प्रथम प्रकाशन विक्रम संवत् १६६७ में देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार संस्था से श्री आनन्द सागर सूरि के सम्पादन में हुआ था तथा द्वितीय प्रकाशन इसी संस्था से विक्रम संवत् १६७६ में हुआ। कल्पसुबोधिका की रचना विनयविजयगणी ने अपनी अन्य कृति आनन्दलेख से पूर्व कर दी थी क्योंकि उन्होनें आनन्द लेख के श्लोक संख्या १४५ में इसका उल्लेख इस प्रकार किया हैक्षणैःक्षणाढ्यैश्च निधानसंख्यैरर्थापनं कल्पसुबोधिकायाः । विचित्रदित्रपवित्रनृत्योत्सवेन तत्पुस्तकपूजनं च ।। (2) भगवती सूत्र नी सज्झाय - पंचम अंग आगम भगवती सूत्र की विशेषता, उसके वक्ता एवं श्रोता की योग्यता आदि का निरूपण करते हुए २१ पद्यों की इस गुजराती कृति 'भगवती सूत्र नी सज्झाय ' का निर्माण विक्रम संवत् १७३१ अथवा विक्रम संवत् १७३८ में रांदेर चातुर्मास में किया गया था। कृति का प्रारम्भ गौतम स्वामी द्वारा प्रभु महावीर स्वामी से पूछे गए ३६००० प्रश्नों के उल्लेख से किया गया है। यह भी बताया गया है कि भगवती सूत्र में एक श्रुतस्कन्ध, ४१ शतक एवं अनेक उद्देश्क हैं। इसे 'व्याख्या प्रज्ञप्ति सूत्र' भी कहा गया है। भगवती सूत्र की श्रोता की योग्यता का निरूपण ५वें से वें पद्य में किया गया है। सज्झायकार विनयविजय गणी पाठकों को इस सूत्र के अध्ययन की ओर आकर्षित करना चाहते हैं। उन्होनें यह भी सूचना दी है कि भगवती सूत्र की स्वर्णक्षरी हस्तलिखित प्रतियाँ अनेक ग्रन्थ भण्डारों में विद्यमान है। (3) इरियावहिय सज्झाय - जैन दर्शन में साधु-साध्वी को गमनागमन में लगने वाले दोषों का 'मिच्छामि दुक्कडं' इरियावहिय ( इच्छाकारेणं) के पाठ से दिया जाता है । यह सामायिक पाठ का भी अंग है एवं प्रतिक्रमण के पाठ का भी । इरियावहिय सज्झाय गुजराती भाषा में रचित है जिसमें दो ढालें हैं। प्रथम ढाल में १४ कडियाँ एवं दूसरी ढाल में १२ कडियाँ है । इस प्रकार इसमें कुल २६ कडियाँ हैं। इस कृति का प्रारम्भ श्रुतदेवी को प्रणाम करके किया गया है। इसमें नारक के १४, एकेन्द्रिय के २२, विकलेन्द्रिय के ६, पंचेन्द्रिय तिर्यंच के २०, मनुष्य के ३०३ और देवों के १६८ इस प्रकार जीवों के ५६३ भेदों का प्रथम ढाल में निरूपण किया गया है। इरियावहिय सूत्र में १८८ अक्षर कहे गए हैं। जिनमें २४ संयुक्ताक्षर, एवं शेष असंयुक्त अक्षर हैं। द्वितीय ढाल में अभिहया, वत्तिया, लेसिया आदि दस प्रकार की जीव विराधनाओं की चर्चा की गई है । ५६३ प्रकार के जीवों की विराधना, राग-द्वेष, मन-वचन एवं काया इन तीन योगों, कृत-कारित एवं अनुमोदित इन तीन प्रकार
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy