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________________ लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन गुणस्थान के समान होते हैं। केवल क्षायोपशमिक सम्यग्मिथ्यात्व के स्थान पर क्षायोपशमिक सम्यक्त्व होता है। 374 स्युर्द्वादशैवाविरत - सम्यग्दृश्यपि मिश्रवत् । क्षायोपशमिकं मिश्रस्थाने सम्यक्त्वमत्र तु ।। ५४ देशविरति श्रावक नामक पंचम गुणस्थान में चतुर्थगुणस्थानवत् क्षायोपशमिक के बारह भेदों के साथ संयमासंयम अथवा देशविरति भेद मिलाकर कुल तेरह भेद होते हैं। द्वादशस्वेषु सद्देशविरतिक्षेपतः स्मृताः । क्षायोपशमिका भावास्त्रयोदशैव पंचमे ।। ** छठे और सातवें गुणस्थान में क्षायोपशमिक भाव के चौदह भेद होते हैं। क्षायोपशमिक दानादि पाँच लब्धियाँ, चार ज्ञान ( मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान एवं मनः पर्यवज्ञान), तीन दर्शन, क्षायोपशमिकसम्यक्त्व और सर्वविरति अथवा क्षायोपशमिकचारित्र ये कुल चौदह भेद इन दो गुणस्थानों में होते हैं। ५६ आठवें, नौवें और दसवें गुणस्थान में क्षायोपशमिकसमकित के बिना छठे और सातवें गुणस्थान के तेरह भेदों के समान क्षायोपशमिक भाव के तेरह भेद होते हैं। ' ५७ ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थान में क्षायोपशमिकी दानादि पाँच लब्धियाँ, चार ज्ञान और तीन दर्शन ये कुल बारह भेद क्षायोपशमिक भाव के होते हैं, क्षायोपशमिक चारित्र ११वें एवं १२वें में गुणस्थान में नहीं होता है।" ग्यारहवें गुणस्थान में केवल औपशमिक भाव और बारहवें गुणस्थान केवल क्षायिक चारित्र ही होता है। अतः क्षायोपशमिक के १२ भेद होते हैं। तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में क्षायोपशमिक भाव ही नहीं होते हैं, अतः उसके भेद भी नहीं होते हैं।' 4. औदयिक भाव- मिथ्यात्व नामक प्रथम गुणस्थान में औदयिक भाव के २१ ही भेद - अज्ञान, असिद्धत्व, असंयम, छह लेश्या, चार कषाय, तीन वेद, चार गति और मिथ्यात्व होते हैं। " ५६ द्वितीय सास्वादन गुणम्शान में मिथ्यात्व रहित औदयिक के बीस भेद होते हैं। तृतीय और चतुर्थ गुणस्थान में अज्ञान और मिथ्यात्व बिना उन्नीस भेद औदयिक भाव के होते हैं।" देशविरति श्रावक गुणस्थान में असिद्धत्व, असंयम, छह लेश्या, चार कषाय, तीन वेद तथा मनुष्य और तिर्यंच ये दो गतियाँ, इस तरह सत्रह भेद औदयिक भाव के होते हैं। ६२ प्रमत्तसंयत गुणस्थान में औदयिक भाव के पन्द्रह भेद होते हैं। तिर्यंच गति और असंयम को छोड़कर शेष भेद पंचम गुणस्थान के समान होते हैं। तेज, पद्म एवं शुक्ल तीन लेश्या, चार कषाय, तीन वेद, एक मनुष्य गति और असिद्धत्व ये
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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