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________________ लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन 362 ( मिथ्यात्व, मिथ्यात्वसम्यक्त्व, सम्यक्त्वमोह) में से मिथ्यात्व और मिथ्यात्वसम्यक्त्व पुंज के कर्मोदय को अध्यवसायवश रोका जाता है। अतः इसमें उपशम का प्रथम अर्थ घटित होता है। कर्मगत मिथ्यास्वभाव को दूर करने से तृतीय सम्यक्त्व शुद्धपुंज प्रकट होता है। अतः उपशम का द्वितीय अर्थ भी यहाँ घटित होता है। इस प्रकार उदयगत मिथ्या स्वभाव के घात से और अनुदय मिथ्यात्व ( सत्तागत मिथ्यात्व ) के उपशम से नष्ट मिथ्या स्वभाव वाला शुद्धपुंज रूप दर्शनमोहनीय भी क्षायोपशमिक सम्यक्त्व कहलाता है। क्षायोपशमिक भाव के अठारह भेद स्वीकार किये जाते हैंभावा अष्टादशप्येवं क्षायोपशमिका इमे । कर्मक्षयोपशमतो यद्भवन्त्युक्त्या द्विधा । ।" अठारह भेद क्रमशः इस प्रकार है क्षायोपशमिक भाव मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनः पर्यवज्ञान क्र. १-४ ५-७ ८ - १० चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधि दर्शन क्षायोपशमिक सम्यक्त्व ११ १२ | मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान और विभंगज्ञान १३ क्षायोपशमिक चारित्र/ सर्वविरति' देशविरति / संयमासंयम १४- १८ | दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य लब्धि कर्म से सम्बद्ध | ज्ञानावरण से सम्बद्ध ज्ञानावरण से सम्बद्ध |दर्शनावरण से सम्बद्ध मोहनीय कर्म से सम्बद्ध मोहनीय कर्म से सम्बद्ध मोहनीय कर्म से सम्बद्ध अन्तराय कर्म से सम्बद्ध प्रकटीकरण अपने-अपने आवरक कर्मों के क्षयोपशम से जन्य विशेषभाव " अपने-अपने आवरक कर्मों के क्षयोपशम से जन्य भाव दर्शन सप्तक के क्षयोपशम से जन्य विशेष भाव चारित्र मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से जन्य भाव अप्रत्याख्यावरण कषाय मोहनीय कर्म के क्षयोपशम जन्य भाव | अन्तराय कर्म के क्षयोपशम जन्य भाव अठारह भेदों का स्वरूप- ज्ञानावरण की देशघाति प्रकृतियाँ चार हैं- १. मतिज्ञानावरण २. श्रुतज्ञानावरण ३. अवधिज्ञानावरण और ४. मनः पर्यवज्ञानावरण। सम्यक्त्वी जीव के इन चार प्रकृतियों के क्षयोपशम से चार ज्ञान ( मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनः पर्यवज्ञान) प्रकट होते हैं तथा मिथ्यात्वी जीव के इन चार प्रकृतियों के क्षयोपशम से मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान और विभंगज्ञान प्रकट होता है। इस प्रकार ज्ञानावरण कर्म से सम्बद्ध क्षायोपशमिक ज्ञान के कुल सात भेद हैं। दर्शनावरण कर्म की देशघाति प्रकृतियाँ तीन हैं- चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण और
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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