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________________ काललोक 337 ज्योतिषकरंडक ग्रन्थ में नालिका की संज्ञा ‘घड़ी' है। उपाध्याय विनयविजय ने नालिका से लेकर यावत् संवत्सर प्रमाणकाल का प्रमाण तोल और माप के आधार पर भी उल्लिखित किया है।५३ ___ दो नालिकाओं का एक मुहूर्त होता है। तोल की अपेक्षा यह एक मुहूर्त दो सौ पल प्रमाण और माप की अपेक्षा से चार आढक (जल से प्रमाणित) प्रमाण होता है। तीस मुहूर्त (साठ नालिका प्रमाण) का एक अहोरात्र होता है। एक अहोरात्र तोल की अपेक्षा से छः हजार पल प्रमाण (तीन भार प्रमाण) और माप की अपेक्षा से एक सौ बीस आढक प्रमाण होता पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष अर्थात् एक पखवाड़ा होता है। तोल की दृष्टि से पैंतालीस भार प्रमाण और माप की दृष्टि से अठारह सौ आढ़क प्रमाण का एक पक्ष होता है। दो पक्ष प्रमाण का एक मास होता है। यह एक मास तोल की अपेक्षा से नब्बे भार प्रमाण और माप की अपेक्षा से छत्तीस सौ आढ़क प्रमाण होता है। बारह मास का एक संवत्सर (वर्ष) होता है। एक वर्ष में तीन सौ साठ दिन-रात (अहोरात्र) होते हैं। दो अयनों को मिलाने पर एक संवत्सर पूर्ण होता है। तीन ऋतुओं से एक अयन बनता है और दो मासों की एक ऋतु बनती है। तोल की अपेक्षा से एक हजार अस्सी भार प्रमाण और माप की अपेक्षा से तैंतालीस हजार दो सौ (४३२००) आढकप्रमाण वाला एक वर्ष होता है। एक वर्ष में क्रमशः प्रावृटु", वर्षा, शरद, हेमन्त, बसन्त और ग्रीष्म छह ऋतुएँ आती हैं। संवत्सर पाँच प्रकार के होते हैं किं च संवत्सराः पंचविधाः प्रोक्ता जिनश्वरैः । सूर्यर्तुचन्द्रनक्षत्राह्वयास्तथाभिवर्द्धितः ।।" १. सूर्यसंवत्सर २. ऋतुसंवत्सर ३. चन्द्रसंवत्सर ४. नक्षत्रसंवत्सर और ५. अभिवर्धितसंवत्सर। पाँच संवत्सरों के समुदाय को एक युग कहा जाता है। एक युग में तीस ऋतुएँ", एक सौ चौंतीस (१३४) अयन" तथा अठारह सौ तीस (१८३०) अहोरात्र होते हैं। चार युगों की एक बीसी होती है और पाँच बीसियों का एक शतम् बनता है। दश शतम् का समूह एक हजार वर्ष कहलाता है और सौ हजार वर्ष का समुदाय एक लाख वर्ष होता है। ८४ लाख वर्षों का समूह एक पूर्वांग और ८४ लाख पूर्वांगों का एक पूर्व होता है। एक पूर्व में ७० लाख ५६ हजार करोड़ वर्ष होते हैं। ८४ लाख पूर्वो का एक त्रुटितांग होता है। ८४ त्रुटितांगों के समूह द्वारा एक त्रुटित बनता है। इस तरह अनुक्रम से ८४ लाख से गुणा करने से अडडांग, अडड, अववांग, अवव,
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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