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________________ काललोक 335 किए जाने से इसे 'प्रमाणकाल' कहा जाता है। "तत्र प्रमीयते परिच्छिद्यते येन वर्षशतपल्योपमादि तत्प्रमाणं तदेव कालः प्रमाणकालः स च अद्धाकालविशेष एव दिवसादिलक्षणो मनुष्यक्षेत्रान्तर्वर्तीति । १२८ जिस काल के द्वारा वर्ष, पल्योपम आदि को मापा जाता है वह प्रमाणकाल है। वह अद्धाकाल का ही प्रकार है। वह दिवस आदि लक्षणवाला होता है तथा मनुष्य क्षेत्र (अढ़ाई द्वीप) में इसका व्यवहार होता है। प्रमाणकालके प्रकार भगवती सूत्र के अनुसार प्रमाणकाल दिवस और रात्रि रूप दो प्रकार का है। अनुयोगद्वार सूत्र के अनुसार प्रमाणकाल दो प्रकार है- १. प्रदेशनिष्पन्न और २ विभागनिष्पन्न। 'कालप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- 1. पद्देसनिप्पण्णे 2. विभागनिप्पण्णे य।३० प्रदेशनिष्पन्न प्रमाणकाल से यहाँ तात्पर्य है कि किसी भी परमाणु अथवा स्कन्ध की स्थिति से काल निर्धारण करना। अर्थात् किसी भी परमाणु अथवा स्कन्ध की स्थिति एक समय, दो समय, तीन समय यावत् असंख्य समय तक होना प्रदेशनिष्पन्न प्रमाणकाल कहलाता है।" केवलज्ञानी, अवधिज्ञानी ही इस प्रमाणकाल को साक्षात् जानते हैं। आधुनिक विज्ञान में भी इस पद्धति द्वारा अवशेषों से काल का निर्धारण किया जाता है। यह भी प्रदेश निष्पन्न प्रमाणकाल का ही स्वरूप है। किसी भी परमाणु अथवा स्कन्ध का काल की अपेक्षा से भिन्न-भिन्न मान में निर्धारण कर विशिष्ट संज्ञा से अभिहित करना विभागनिष्पन्नप्रमाणकाल कहलाता है। समय, आवलिका, मुहूर्त, दिवस, अहोरात्र, पक्ष, मास, संवत्सर, युग, पल्य, सागर और परावर्तन इन संज्ञाओं से काल विभागों से परमाणु अथवा स्कन्ध निष्पन्न किए जाते हैं।१२ लोकप्रकाशकार प्रमाणकाल के तीन प्रकारों को दो रूपों में प्रस्तुत करते हैं१. अतीत, अनागत और वर्तमान के भेद से प्रमाणकाल के तीन प्रकार हैं। अत्र प्रमाणकालोऽस्ति प्रकृतिः स प्रतन्यते। अतीतोऽनागतो वर्तमानश्चेति त्रिधा स च ।।३३ २. संख्यात, असंख्यात और अनन्त के भेद से प्रमाणकाल के तीन प्रकार हैं। असंख्येयः पुनः कालः ख्यातः पल्योपमादिकः । ..... अनन्तःपुद्गलपरावर्त्तादिः परिकीर्तितः ।।" जो काल तत्क्षण चल रहा है वह 'वर्तमानकाल' कहलाता है- 'वर्तमानः पुनर्वर्तमानैकसमयात्मकः । वर्तमानकाल पर आश्रित जो समय व्यतीत हो गया है वह 'अतीतकाल'
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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