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________________ 298 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन ने जम्बूद्वीप को वलयाकार में घेरा है। इन द्वीपों का विस्तार क्रमशः दुगुना-दुगुना होता चला गया है। इन सात द्वीपों को सात सागर- लवणसागर, इक्षुसागर, सुरासगर, घृतसागर, दधिसागर, क्षीरसागर और जलसागर एकान्तर क्रम से घेरे हुए हैं। बौद्ध-परम्परा में आचार्य वसुबन्धु ने अभिधर्मकोश में इस पर चर्चा करते हुए लिखा है कि जम्बूद्वीप, पूर्वविदेह गोदानीय और उत्तरकुरु ये चार महाद्वीप हैं। जैन आगम साहित्य भगवती सूत्र, जीवाजीवाभिगम, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ज्ञानार्णव, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्त, लोकप्रकाश, आराधना समुच्चय, तिलोयपण्णत्ति आदि में जम्बूद्वीप का विस्तृत निरूपण मिलता है। जैन आगम-साहित्य के अनुसार मध्यलोक पूर्व-पश्चिम एक रज्जू चौड़ा और उत्तर-दक्षिण सात रज्जू विस्तार वाला है। इसमें जम्बूद्वीप आदि असंख्यात द्वीप और लवण समुद्र आदि असंख्यात समुद्र हैं। मध्यलोक के बीचों-बीच जम्बूद्वीप है, यह थाली के आकार का है। इसका विस्तार एक लाख योजन है। जम्बूद्वीप के चारों ओर वलयाकार लवण समुद्र है, जिसका विस्तार दो लाख योजन है। लवण समुद्र घातकीखण्ड द्वीप से घिरा है। इसका विस्तार चार लाख योजन है। घातकी खण्ड द्वीप कालोदधि समुद्र से परिवेष्टित है, इसका व्यासविस्तार आठ लाख योजन है। पुष्करवरद्वीप, पुष्करवरसमुद्र से घिरा है। उसके आगे क्रमशः वारुणीवर, क्षीरवर, घृतवर, इक्षुवर द्वीप, नन्दीश्वरवर, वरुणवर, अरुणवर, कुण्डलवर, शंखवर, रुचकवर, भुजंगवर, कुशवर, क्रोंचवर आदि एक-एक द्वीप, एक-एक समुद्र के क्रम से एक-दूसरे को घेरे हुए असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं। सबसे अन्त में स्वयभूरमणद्वीप और स्वयम्भूरमण समुद्र है। पुष्करवरद्वीप से लेकर आगे के सभी द्वीप-समुद्रों के नाम समान हैं। समस्त द्वीप-समुद्रों का विस्तार पूर्ववर्ती द्वीप-समुद्रों के विस्तार से दुगुना-दुगुना है। " (द्रष्टव्य पृष्ठ सं. २६८) जम्बूद्वीप जम्ब्वा नानारत्नमय्या वक्ष्यमाणस्वरूपया। सदोपलक्षितो द्वीपो जम्बूद्वीप इति स्मृतः ।। नित्यं कुसुमितैस्तत्र तत्र देशे विराजते। वनैरनेकैर्जम्बूनां जम्बूद्वीपः ततोऽपि च।। उपाध्याय विनयविजय कहते हैं कि विविध प्रकार के रत्नों से जड़ित जम्बू अधिक होने से अथवा हमेशा प्रफुल्लित जम्बू के विशाल वन होने के कारण यह द्वीप 'जम्बूद्वीप' कहलाता है। एक पल्योपम आयुष्य वाला 'अनादृत' नामक देव जम्बूद्वीप का अधिष्ठायक देव है। यह जम्बूद्वीप एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा है। इसकी परिधि ३,१६,२२७ योजन, ३ कोस, १२८ धनुष्य, १३.५
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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