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________________ 277 जीव-विवेचन (4) ३६. (क) लोकप्रकाश, 3.1341 (ख) कर्मग्रन्थ भाग 4, गाथा 24 पृ. सं. 186 ३७. (क) लोकप्रकाश, 3.1343 (ख) कर्मग्रन्थ भाग 4, गाथा 24 पृ. सं. 186 ३८. गोम्मटसार, जीवकाण्ड, जीवतत्त्वप्रदीपिका, गाथा 219 ३६. लोकप्रकाश, 3.1344-1346 ४०. (क) लोकप्रकाश, 3.1347 (ख) कर्मग्रन्थ भाग 4, गाथा 24 पृ. सं. 186-187 ४१. लोकप्रकाश, 3.1348 ४२. कर्मग्रन्थ, व्याख्याकार-सुखलाल संघवी, भाग 4, गाथा 24, पृष्ठ संख्या 92 ४३. लोकप्रकाश, 3.1351 ४४. (क) लोकप्रकाश, 3.1352 (ख) कर्मग्रन्थ, भाग 4, पृष्ठ संख्या 187 'तथोक्तम् आवश्यक वृहदवृत्ती- 'गिण्हइय काइ एणं निसिरइ तह वाइएण जोगेणंति।' -लोकप्रकाश, पृष्ठ 314 ४६. कर्मग्रन्थ, भाग 4, पृष्ठ सं. 135 ४७. लोकप्रकाश, भाग 1, पृष्ठ 315-316 ४५. चउबिहे पमाणे पण्णत्ते, तंजहा-दव्यप्पमाणे, खेत्तप्पमाणे, कालप्पमाणे, भावप्पमाणे। मननमवगमनं मन्यतेऽनेनेति मानः-स्थानांग सूत्र, ठाणांग 4, उद्देशक 1, पृष्ठ सं. 237 द्रव्यप्रमाण-द्रव्य का प्रमाण बताने वाली संख्या। क्षेत्रप्रमाण-क्षेत्र का माप करने वाले दण्ड, धनुष, योजन आदि। कालप्रमाण-काल का माप करने वाले आवलिका, मुहूर्त आदि। भावप्रमाण-प्रत्यक्षादि प्रमाण और नैगमादि नय। ४६. अनुयोगद्वार सूत्र, प्रमाणाधिकार निरूपण, पृष्ठ 227 ०. 'मीयते-परिच्छिद्यते वस्त्वनेनेति मानम्'-व्याख्याप्रज्ञप्ति उद्देशक 1 की वृत्ति से। ५१. 'अभिमाने सूत्रकृतांग, श्रुतस्कन्ध 1, अध्ययन 1, की वृत्ति से। लोकप्रकाश, 3.1410, लोकप्रकाश, 4.136-137 ५४. लोकप्रकाश, 4.138-139 ५५. लोकप्रकाश, 4.140-141 प्रतर वर्ग को कहते हैं और किसी राशि को दो बार लिखकर परस्पर गुणा करने पर जो प्रमाण आता है वह वर्ग है। सूच्यंगुल को सूच्यंगुल से गुणा करने पर जो प्रमाण होता है वह प्रतरांगुल हैसूयी सूयीए गुणिया पयरंगुले। प्रतरांगुल असंख्यात प्रदेशात्मक होता है- अनुयोगद्वारसूत्र प्रमाणाधिकार, सूत्र 337, पृष्ठ 248-249 ५७. सूच्यंगुल-सूई के आकार में दीर्घता की अपेक्षा एक अंगुल लम्बी तथा बाहल्य की अपेक्षा एक प्रदेश ऋजुआयत आकाशप्रदेशों की पंक्ति सूच्यंगुल कहलाती है। सूच्यंगुल प्रमाण आकाश में असंख्य प्रदेश होते हैं। अनुयोगद्वार सूत्र में कहा भी गया है- 'अंगुलायता एगपदेसिया सेढी सूइअंगुले। -अनुयोगद्वारसूत्र प्रमाणाधिकार निरूपण, सूत्र 337, पृष्ठ 248-249 ५८. लोकप्रकाश, 5.317-318 ५६. लोकप्रकाश, 5.320-321 ६०. लोकप्रकाश, 6.53 और 54 ६१. लोकप्रकाश, 6.189-191 ८३
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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