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________________ जीव-विवेचन (4) | (८) सन्नी खेचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय (E) सन्नी उरपरिसर्प तिर्यंच पंचेन्द्रिय | (१०) सन्नी भुजपरिसर्प तिर्यंच पंचेन्द्रिय | अन्तर्मुहूर्त | अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त | पल्योपम का असंख्यातवां भाग | एक करोड़ पूर्व एक करोड़ पूर्व मनुष्य गति के जीव की स्थिति नाम जघन्य स्थिति उत्कृष्ट स्थिति १ । | असन्नी मनुष्य | अन्तर्मुहुर्त अन्तर्महर्त्त २ | युगलिक सन्नी मनुष्य १ पूर्व कोटि झांझेरी तीन पल्योपम | ३ | कर्मभूमिज सन्नी मनुष्य | अन्तर्मुहूर्त |१ पूर्व कोटि वर्ष भवसंवेध द्वार के माध्यम से एक जीव अन्य गति के कितने भव कर पुनः अपने भव को प्राप्त कर लेता है, इसका निरूपण करने के साथ भवसंवेध के कालमान एवं सभी जीवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट भवस्थिति का भी वर्णन किया गया है। यह प्रतिपादन अपने आपमें अत्यन्त विशिष्ट है, जो जीवों की अन्य भवों में गति आदि की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है। समीक्षण १. प्रायः भारतीय दर्शन में 'योग' शब्द का प्रयोग चित्तवृत्ति निरोध के अर्थ में हुआ है। युज् समाधौ धातु से निष्पन्न योग शब्द चित्त की समाधि के अर्थ में प्रयुक्त है। 'युजिर् योगे' वाक्यानुसार योग शब्द जोड़ने के अर्थ में प्रयुक्त होता है। जैन दर्शन भी मोक्ष से जोड़ने वाली समस्त साधना को योग कहता है। किन्तु जैन दर्शन में मन, वचन एवं काया की प्रवृत्ति को भी योग कहा गया है। उपाध्याय विनयविजय ने इसी अर्थ में योग शब्द का अर्थ ग्रहण करके योग के भेदोपभेदों एवं विविध जीवोंमें उनकी प्राप्ति का विवेचन किया है। योग के मुख्यतः तीन भेद हैं- काययोग, वचनयोग और मनोयोग। इनमें मन के चार, वचन के चार एवं काययोग के सात भेद होने से योग के पन्द्रह प्रकार भी निरूपित हैं। मनोयोग के चार प्रकार हैं- सत्यमनोयोग, असत्यमनोयोग, मिश्र मनोयोग और व्यवहार मनोयोग। वचनयोग के भी इसी प्रकार सत्य, असत्य, मिश्र और व्यवहार के आधार पर चार प्रकार हैं। काययोग के औदारिक, औदारिक मिश्र, वैक्रिय, वैक्रिय मिश्र, आहारक, आहारक मिश्र एवं कार्मण काययोग ये सात प्रकार हैं। तैजस शरीर एवं कार्मण शरीर के सदैव सहचारित्व के कारण तैजस शरीर काययोग का समावेश कार्मण काययोग में ही हो जाता है। योग से आत्मप्रदेशों में स्पन्दन होता है।
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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