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________________ 262 ४ ५ ६ २ (३) सातवीं नरक भूमि में यदि संज्ञी मनुष्य उत्पन्न हों दो तो तीन ३ (१) आनत आदि नवम देवलोक से लेकर बारहवें देवलोक और सर्व नौ ग्रैवेयक में उत्पन्न मनुष्य (२) विजयादि चार अनुत्तर विमान में उत्पन्न मनुष्य (३) पांचवें अनुत्तर विमान में उत्पन्न मनुष्य भवनपति, व्यनतर, ज्योतिषी और पहले दो देवलोक तक में उत्पन्न युगलिक मनुष्य और तिर्यंच ( खेचर, स्थलचर) तीन तीन दो भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष तथा सहस्रार आठवें | देवलोक तक के देव और प्रथम से छह नरक तक के नारकी यदि पर्याप्त संज्ञी तिर्यंच और मनुष्य में उत्पन्न हों तो रत्नप्रभा नामक नरक की प्रथम भूमि, भवनपति और दो व्यन्तर में उत्पन्न असंज्ञी पर्याप्त तिर्यंच वैक्रिय शरीरी जीवों से औदारिक शरीर प्राप्त जीवों का भवसंवेध क्र. जीव का गमन उत्कृष्ट जन्म 9 आठ जघन्य जन्म दो (१) जघन्य स्थिति वाला सातवें नरक का जीव यदि दो संज्ञी पर्याप्त तियंच में उत्पन्न हों तो (२) उत्कृष्ट स्थिति वाला सातवें नरक का जीव यदि पर्याप्त संज्ञी तियंच में उत्पन्न हों तो भेज (१) आनत नामक वें देवलोक से १२वें देवलोक तक दो के और सर्व नौ ग्रैवेयक के देव यदि मनुष्यगति में उत्पन्न हों तो लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन दो (२) विजय आदि चार अनुत्तर विमान तक के देव यदि मनुष्य गति में उत्पन्न हो तो (३) सर्वार्थ सिद्ध ( पांच अनुत्तर विमान) के देव यदि दो मनुष्य गति में उत्पन्न हों तो (४) भवनपति, व्यनतर, ज्योतिषी, सौधर्म व ई शान दो देवलोक के देव यदि पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय में उत्पन्न हों तो to सात पांच तीन दो छह चार छह चार ज र
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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