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________________ जीव-विवेचन (4) 245 तैजस शरीर और कार्मण शरीर के सदा सहचारित्व के कारण तैजस शरीरकाययोग की पृथक गणना न कर उसे कार्मणकाययोग में ही समाविष्ट किया जाता है।" मनोयोग मनोयोग एवं वचनयोग के सत्यता और असत्यता के आधार पर चार-चार उपभेद किए गए हैं। सत्यता और असत्यता से यहाँ तात्पर्य सर्वज्ञ के वचनानुसार वस्तु के यथार्थ और अयथार्थ स्वरूप से है।" मनोयोग के उपभेद इस प्रकार हैंसत्यमनोयोग-जिस मनोयोग द्वारा वस्तु का चिन्तन सर्वज्ञ प्रणीत वचनानुसार होता है अर्थात् वस्तु के यथार्थ स्वरूप पर विचार किया जाता है वह सत्यमनोयोग कहलाता है। यथा- जीव द्रव्यार्थिक नय से नित्य है और पर्यायार्थिकनय से अनित्य है। यह चिन्तन सत्यमनोयोग है। असत्यमनोयोग-जिस मनोयोग से वस्तु की जिनवचन से विपरीत कल्पना की जाए वह असत्यमनोयोग होता है। जैसे- जीव एक ही है, नित्य ही है, बड़ा है, छोटा है, कर्ता है तथा निर्गुणी है इत्यादि चिन्तन करना असत्यमनोयोग है। सत्यमृषामनोयोग- वस्तु का कुछ अंश यथार्थ और कुछ अंश अयथार्थ, ऐसा मिश्रित चिन्तन जिस मनोयोग द्वारा होता है वह सत्यमृषामनोयाग अथवा मिश्रमनोयोग कहलाता है। गोम्मटसार में इसे उभयमनोयोग भी कहा गया है। उदाहरणार्थ उद्यान में लगे बहुत से अशोक वृक्षों के साथ अल्प संख्या में अन्य वृक्ष भी हैं फिर भी 'सभी अशोक वृक्ष ही हैं। ऐसा विचार करना सत्यमृषामनोयोग कहलाता है। यहाँ अशोक वृक्षों के सद्भाव से सत्यता है और अन्य वृक्षों के होने पर भी 'सभी अशोक वृक्ष है' ऐसा विचार करना असत्य है। अतः यहाँ सत्यमृषामनोयोग है। असत्यामृषामनोयोग- अर्थ संयोग के अभाव में जिस मनोयोग द्वारा विधि-निषेध शून्य कल्पना की जाती है वह असत्यअमृषामनोयोग कहलाता है। इस मनोयोग की भिन्न-भिन्न संज्ञाएँ प्राप्त होती हैं- न सत्य न झूठ, असत्यामृषामनोयोग, अनुभय मनोयोग इत्यादि। उपाध्याय विनयविजय", सुखलाल संघवी" आदि विद्वान् उक्त चार भेद व्यवहारनय की अपेक्षा से मानते हैं। निश्चय नय की दृष्टि से सभी का समावेश सत्य और असत्य इन दो भेदों में ही हो जाता है। वचनयोग मनोयोग के समान ही वचनयोग का स्वरूप होता है। मनोयोग में चिन्तन होता है और
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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