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________________ जीव-विवेचन (3) 215 विकासगामी आत्मा प्रमाद का सर्वथा त्याग करता है और स्वरूप की अभिव्यक्ति के अनुकूल मनन-चिन्तन के सिवाय अन्य सभी व्यापारों का त्याग कर देता है। आत्मा का यह गुण परिणाम 'अप्रमत्तसंयम' गुणस्थान कहलाता है और इस गुणस्थान को प्राप्त जीव भी 'अप्रमत्तसंयत' कहलाता है। इस गुणस्थान में सभी पन्द्रह प्रकार के प्रमादों का सर्वथा अभाव हो जाता है, अतः संयमी जीव 'अप्रमत्तसंयत' कहलाता है। यश्च निद्राकषायादिप्रमादरहितो यतिः । गुणस्थानं भवेत्तस्याप्रमत्तसंयताभिमध् ।।६० ... यहाँ प्रयुक्त 'अप्रमत्त' शब्द आदि दीपक है अर्थात् आगे आने वाले सभी गुणस्थानों में जीव की अप्रमत्त अवस्था होती है। जो देह में रहते हुए भी देहातीत भाव से युक्त आत्मस्वरूप में रमण करते हैं और प्रमाद पर नियन्त्रण करते हैं, वे ही सजग साधक सप्तम गुणस्थान में आते हैं। पारिभाषिक शब्दावली में प्रत्याख्यानावरण कषाय के सर्वघाती स्पर्धकों का उदयाभाव रूप क्षय अथवा सदवस्था रूप उपशम और संज्वलन कषाय एवं नौ नोकषाय का उदय मन्द होने से इस गुणस्थान में भी संयम की उत्पत्ति होती है। आत्मा का यह गुण परिणाम भी क्षायोपशमिक भावरूप है तथा सम्यक्त्व के प्रतिबन्धक कमों के क्षय, क्षयोपशम और उपशम से यह गुणस्थान क्षायिक, क्षायोपशमिक और औपशमिक भाव रूप वाला भी है। लक्षण अप्रमत्तसंयत गुणस्थान प्राप्त जीव के कुछ लक्षण इस प्रकार हैं१. सप्तम गुणस्थानवर्ती आत्मा व्रत, गुण और शील से मण्डित होता है। २. सप्तम गुणस्थानवी जीव निरन्तर आत्मा और शरीर के भेद-विज्ञान से युक्त होता है। ३. इस गुणस्थान को प्राप्त जीव ध्यान में ही लवलीन रहता है। ४. यह अवस्था पूर्ण सजगता की स्थिति है। ५. इस गुणस्थान में भी साधक को शारीरिक व्याधियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। इस गुणस्थान में साधक अल्पकाल अर्थात् अन्तर्मुहूर्त तक ही रहता है। भगवतीसूत्र में एक जीव के एक भव में अप्रमत्तसंयत गुणस्थान की समग्र स्थिति देशोनकोटि पूर्व मानी गई है 'अपमत्तसंजयस्स णं भंते! अपमत्तसंजमे वट्टमाणस्स सव्वा वि य णं अप्पमत्तद्धा कालतो केवच्चिरं होंति?मंडियपुत्ता! एग जीवं पडुच्च जहन्नेणं अन्तोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुवकोडी देसूणा! णाणा जीवे पडुच्च सव्वद्धं । २००
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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