SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पारिभाषिक शब्दावली (विनयविजयकृत लोकप्रकाश के आधार पर) (१) अंगमान- जीव के शरीर की ऊँचाई, मोटाई और चौड़ाई का प्रमाण अंगमान कहलाता है। (३.२१२) (२) अज्ञान- अज्ञान अर्थात् कुत्सित ज्ञान है, क्योंकि यहाँ प्रयुक्त 'अ' निषेधार्थक है जो कुत्सित अर्थ में लिया जाता है। यह कुत्सित रूप मिथ्यात्व के योग से है। (३.८७०) (३) अद्धाकाल- सूर्यादि की क्रिया से प्रगट हुआ और गोदोहादि क्रिया की अपेक्षा रहित जो काल मनुष्य क्षेत्र में होता है वह अद्धाकाल कहलाता है। (२८.१०५) (४) अनन्तकाल- पुद्गलपरावर्तन काल अनन्त काल कहलाता है। (२८.२०२) (५) अनन्तराप्ति- विवक्षित जन्म से मृत्यु प्राप्त कर और दूसरे जन्म में उत्पन्न होकर प्राणी का समकित आदि को स्पर्श करना अनन्तराप्ति कहलाता है। (३.२८२) (६) अबाधाकाल (आयुष्य)- जितने आयुष्य शेष रहते अगले जन्म का आयुष्य बन्धन करने में आता है उतने काल को आयुष्य का अबाधाकाल कहते हैं और उसके बाद वह उदय में आता है। (३.६३) (७) अर्थावग्रह- 'यह कुछ है' इस प्रकार से शब्द आदि अधिक स्पष्टता से समझ में आता है वह अर्थावग्रह कहलाता है। (३.७०६) (८) अवधिज्ञान-अर्थ का साक्षात् निश्चय रूप अवधान का नाम अवधि है अथवा दूसरे रूप में 'अव' शब्द नीचे के अर्थ में 'अव्यय' रूप में गिना जाए तो नीचे विस्तार पूर्वक वस्तु जिसके द्वारा दिखे उस ज्ञान का नाम अवधि है अथवा तीसरे रूप में 'अव' शब्द मर्यादा के अर्थ में यदि लें तो रूपी पदार्थों के विषय में प्रवृत्ति से उत्पन्न ज्ञान अवधिज्ञान कहलाता है। (३. ८३६-८३८) (E) अवाय- ईहा के पश्चात् पदार्थ का निश्चय होना अवाय है। (३.७१२) (१०) असंख्यातकाल-पल्योपम, सागरोपम आदि औपमिक काल असंख्यात काल है। (२८. २०२)
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy