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________________ जीव-विवेचन (2) १५६. लोकप्रकाश, 3.347 १६०. लोकप्रकाश, 5.311 १६१. लोकप्रकाश, 5.312 १६२. प्रवचनसारोद्धार, गाथा 1159-1160 १६३. लोकप्रकाश, 6. 170 १६४. लोकप्रकाश, 7.106 १६५. लोकप्रकाश, 3.315 १६६. लोकप्रकाश, 3.318 १६७. लोकप्रकाश, 3. 323 १६८. झाणज्झयणं. 63 १६६. लोकप्रकाश, 3. 383 १७०. लोकप्रकाश, 3.385-386 १७१. लोकप्रकाश, 3.387 १७२. लोकप्रकाश भाग 1, पृ. 132 पर १७३. लोकप्रकाश, 3.389-390 १७४. लोकप्रकाश, 3.391-392 १७५. लोकप्रकाश, 3.393 १७६. लोकप्रकाश, 3.394 १७७. लोकप्रकाश, 3.394 १७८. लोकप्रकाश, 3.395 १७६. लोकप्रकाश, 4. 122 १८०. लोकप्रकाश, 5.313 १८१. लोकप्रकाश, 6.36 १८२. लोकप्रकाश, 6.171 १८३. लोकप्रकाश, 7.14 और 7.106 १८४. लोकप्रकाश, 8.87 १८५. लोकप्रकाश, 9.17 १८६. अस्थि सम्बन्ध रूपाणि तत्र संहनानि तु ।' -लोकप्रकाश, 3.398 १८७ 'यस्योदयादस्थिबन्धनविशेषो भवति तत्संहननं नाम - सर्वार्थसिद्धि, 8/11 १८८. षट्खण्डागम, धवला पुस्तक 6/1-9, 1.36 १८६. तत्त्वार्थाधिगम भाष्य टीकाकार सिद्धसेनगणि, 8.12, पृष्ठ सं. 154 १६०. (क) लोकप्रकाश, 3.398 गाथा में उद्धृत (ख) द्रष्टव्य अपि - (1) सर्वार्थसिद्धि 8.11 (2) षट्खण्डागमं, धवला पुस्तक 6/1-9.1 165 १६१. कर्मग्रन्थ, भाग 1 गाथा 38 १६२. लोकप्रकाश, 3.400 और 401 १६३. तत्त्वार्थाधिगम सूत्र सिद्धसेनगणि टीका, जीवनचन्द साकरचन्द जवेरी ट्रस्टी सेठ देवचन्द
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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