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________________ 137 जीव-विवेचन (2) तेजोलेश्या की उत्कृष्टस्थिति से एक समय अधिक जघन्य स्थिति और उत्कृष्ट एक मुहूर्त अधिक दस सागरोपम शुक्ल मनुष्य की जघन्य लान्तक देवलोक से लेकर स्थिति अन्तर्मुहूर्त एवं | अन्तिम अनुत्तर विमान तक के उत्कृष्ट नौ वर्ष कम | देवों की अपेक्षा पद्म लेश्या की एक करोड़ पूर्व की है | उत्कृष्ट स्थिति से एक समय तथा तिर्यंच की दोनों | अधिक जघन्य स्थिति और अन्तर्मुहूर्त है। | उत्कृष्ट एक मुहूर्त अधिक ३३ | सागरोपम है। लेश्या स्थिति (एक भव की अपेक्षा से)- उत्तराध्ययनसूत्र, अध्ययन ३४, गाथा ३४ से ५५ लेश्या जघन्य स्थिति उत्कृष्ट स्थिति कृष्ण . - अन्तर्मुहूर्त एक मुहूर्त अधिक तैंतीस सागरोपमा नील | एक पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम कापोत | एक पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपमा एक पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपमा पद्म | एक मुहूर्त अधिक दस सागरोपम शुक्ल एक मुहूर्त अधिक तैंतीस सागरोपम तेजो आगामी जन्म में प्राप्त होने वाली लेश्या मृत्यु के समय से एक अन्तर्मुहूर्त पहले ही आ जाती है। इस दृष्टि से कृष्णादि लेश्याओं की उत्कृष्ट स्थिति में एक अन्तर्मुहूर्त का अधिक समय जोड़ा गया है। प्रथम लेश्या की स्थिति ७वीं नरक की उत्कृष्ट स्थिति की अपेक्षा से कही है और दूसरी लेश्या की स्थिति धूमप्रभा नामक नरक के प्रथम प्रस्तर की उत्कृष्ट आयु की अपेक्षा से कही है। तीसरी लेश्या-स्थिति शैला नरक के प्रथम प्रस्तर की उत्कृष्ट आयु की अपेक्षा से एवं चौथी लेश्या-स्थिति ईशान देवलोक के देवों की उत्कृष्ट आयु की अपेक्षा से कही है। ५वीं लेश्या-स्थिति, ब्रह्म देवलोक के उत्कृष्ट आयुष्य की अपेक्षा से और छठी लेश्या-स्थिति अनुत्तर विमान के देवों की उत्कृष्ट आयु की अपेक्षा से कही है।३६ लेश्या का परिणाम भाव लेश्या जीव के परिणाम या अध्यवसाय रूप होती है, किन्तु एक लेश्या का दूसरी लेश्या
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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