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________________ लोक-स्वरूप एवं जीव-विवेचन (1) इस तरह पाँचों शरीर स्व-कर्म करते हुए सतत क्षय होते रहते हैं। (12) प्रमाण अवगाह कृत भेद - औदारिक शरीर का उत्कृष्ट प्रमाण एक हजार योजन से कुछ अधिक होता है। वैक्रिय शरीर का एक लाख योजन से थोड़ा अधिक है । आहारक शरीर का एक हाथ प्रमाण है। तैजस और कार्मण शरीर का प्रमाण केवली समुद्घात के समय लोकाकाश के सदृश होता है। २६२ अतः आहारक शरीर सबसे अल्प प्रमाणक्षेत्र में अवगाहन करता है, औदारिक शरीर उससे संख्यात् गुणा प्रदेशों में, वैक्रिय शरीर, औदारिक शरीर से संख्यात गुणा अधिक और अन्तिम दो शरीर सर्वलोक का अवगाहन करते हैं। २६३ २६५ सभी शरीरों की जघन्य और उत्कृष्ट रूप में अवगाहना का विस्तृत उल्लेख प्रज्ञापना सूत्र ग्रन्थ में भी मिलता है। आहारक शरीर की जघन्य अवगाहना एक रत्नि प्रमाण (एक हाथ ) से कुछ कम होती है" और नारकी जीवों की तैजस शरीर की जघन्य अवगाहना एक हजार योजन होती है। शेष सभी औदारिक, वैक्रिय, तैजस एवं कार्मण शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग होती है। समुच्चय औदारिक शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन, वैक्रिय शरीर की एक लाख योजन से कुछ अधिक, आहारक शरीर की पूर्ण रत्नि प्रमाण और तैजस शरीर की लोकान्त तक होती है, परन्तु मारणान्तिक समुद्घात के समय जीव की तैजस एवं कार्मण शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना, इस प्रकार होती है२६६ मारणान्तिक समुद्घात समयवर्ती जीवों की तैजस एवं कार्मण शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना जीवों के नाम क्र. सं.. 9 २ ३ ४ ५ ६ ७ एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय नारकी तियंच पंचेन्द्रिय उत्कृष्ट अवगाहना सनत्कुमारादि और सहस्रार देवलोक तक के देव लोक के एक छोर से दूसरे छोर तक । तिर्यक्लोक से लोकान्त तक। अधोलोक में अन्तिम सातवें नरक तक विकलेन्द्रिय जीव के समान तिर्यक्लोक से लोकान्त तक भरत क्षेत्र से लोकान्त तक मनुष्य भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और अधोलोक में शैला नामक नरक पर्यन्त, तिरछे लोक में पहले दो देवलोक के देव स्वयंभूरमण समुद्र की किनारे की वेदिका तक और ऊर्ध्वलोक में अन्तिम सिद्धशिला के ऊर्ध्वतल तक। अधोलोक में पाताल कलश के बीच तीसरे भाग तक, तिरछे लोक में स्वयंभूरमण समुद्र पर्यन्त और ऊर्ध्वलोक में अच्युत देवलोक तक । 93
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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