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________________ नवतत्त्वसंग्रहः देवता है, काकाः पितामहाः) अर्थात् काक दादा पडिदादा है, मोर की पांख की पवन से मोरणी के गर्भ होता है इत्यादि रूढि लोकसंज्ञा । ज्ञानावरणी(य) का क्षयोपशम मोहनी(य) के उदयसूं है । १५. धर्मसंज्ञा–क्षात्यादिसेवनरूपा मोहनी(य) के क्षयोपशम से होय । १६. ओघसंज्ञा-अव्यक्त उपयोगरूपा, वेलडी रूंख पर चडे है । ज्ञानवरणी(य) क्षयोपशम से है। उपरी १५ संज्ञा तो संज्ञी पंचेंद्री, सम्यग्दृष्टि वा मिथ्यादृष्टि ने है यथासंभव । ओघसंज्ञा एकेंद्रादि जीवां के जान लेनी । ए सर्व 'निर्युक्तौ । (२०) अथ आहारादि संज्ञा ४ यंत्रं स्थानांगस्थाने ४ उद्देशे ४ वा पन्नवणा संज्ञापद ४ संज्ञा नाम | १ आहारसंज्ञा । २ भयसंज्ञा । ३ मैथुनसंज्ञा | ४ परिग्रहसंज्ञा नारकी | | २ संख्येय गुणे | ४ संख्येय गुणे | १ स्तोक सर्वेभ्यः | ३ संख्येय गुण तिर्यग् । ४ संख्येय गुणे | ३ संख्येय गुणे | २ संख्येय गुणे । १ सर्व सें स्तोक मनुष्य । २ संख्येय गुणे | १ स्तोक सर्वेभ्यः ४ संख्येय गुणे ३ संख्येय गुणे देवता | १ स्तोक रेसर्वेभ्यः | २ संख्येय गुणे | ३ संख्येय गुणे | ४ संख्येय गुणे । कारण ४।४ | कोठे के रीते हूया | "धी(धै)र्यहीनात् । मांस रुधिर की | मूर्छा होने ते पुष्टाइ सें चार २ क्षुधा लगने से | भय के उदय | वेद के उदयते | लोभ के (सें) उदयते (सें) चार २ आहार के देखे | भय के वस्तु के | स्त्री के देखे सुने उपगरण के सुने सें देखने में । देखे सुने सें चार २ आहार की चिंता | भय की चिंता | कामभोग की | उपगरण की चिंता करे(रने)सें | सें | चिंतोना करे(रने) | करने में सें (२१) सांतर निरंतर द्वारम् गतिभेद । नारकी । तिर्यंच । मनुष्य देवता __अंतर जघन्य | १ समय । ० १ समय १ समय अंतर उत्कृष्ट | १२ मुहूर्त १२ मुहूर्त १२ मुहूर्त जीवसंख्या | १ जीव एक समये | प्रतिसमय अनंते | १ जीव एक समय | १ जीव एक समय जघन्य उपजे | । उपजे । उपजे | उपजे १. झाड । २. नियुक्तिने विषे । ३. बधाथी । ४. धीरज ओछी होवाथी ।
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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