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________________ ४८ अल्पबहुत्व ८ भवनपति देवी ९ व्यंतर देवी १० जोतिषी देव १० जोतिषी देवी ११ वैमानिक देव ११ वैमानिक देवी १२ भवनपति १२ व्यंतर १२ जोतिषी १२ वैमानिक १३ भवन० देवी १३ व्यंतर देवी १३ जोतिषी देवी १३ वैमानिक देवी १४ भवन० देव १४ भवन० देवी १४ व्यंतर देव १४ व्यंतर देवी १४ जोतिषी देव १४ जोतिषी देवी १४ वैमानिक देव १४ वैमानिक देवी कृष्ण लेश्या ८ वि० O o o o ७ वि० ११ वि० ० O ५ वि० ९ वि० o ० ९ वि० १२ वि० १७ वि० २० वि० O o o o नील लेश्या कापोत लेश्या ७ वि० ६ सं० О o ० o ६ वि० १० वि० О 0 ४ वि० ८ वि० ० ० ८ वि० ११ वि० १६ वि० १९ वि० O ० ० ० ० o o o ५ असं० ९ असं० ० O ३ असं० ७ असं० ० ० ७ असं० १० सं० १५ असं १८ सं० o o ० ० तेजोलेश्या २ सं० १. स्तो० -२ सं० ३ असं० सं० ४ ४ असं० ८ असं० १२ सं० ३ असं० २ असं० ६ असं० १० सं० १ स्तो० ५ असं० ६ सं० १३ सं० १४ सं० २१ सं० २२ सं० ३ असं० ४ सं० पद्मलेश्या ० o o २ असं० ० ० ० o २ असं० ० o ० o o 0 ० ० ० o २ असं० o नवतत्त्वसंग्रहः शुक्ल लेश्या O ० १ स्तोक ० o ० o १ स्तोक O 。。。 ० ० ० ० o O O ० ० १ स्तोक ० मनुष्य में ९ बोल की अल्पबहुत्व तिर्यंचवत् जान लेनी, दशमे बोल की अल्पबहुत्व मनुष्यदंडक में नहि है । इस वास्ते ९ बोल की तिर्यंचवत् अल्पबहुत्वं ज्ञेयम् । एह यंत्र श्रीप्रज्ञापनाजी के १७ में पदथी अने दूजे उद्देशेथी षट् लेश्या की अल्पबहुत्व है ।
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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