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________________ ४० नवतत्त्वसंग्रहः स्थिति | जघन्य १० सागरो- | जघन्य ३ साग- | जघन्य १० नारकीनी पम पल्योपमका | रोपम पल्योप- सहस्रवर्ष असंख्यातमा भाग मना असंख्यातमा उत्कृष्ट ३ अधिक, उत्कृष्ट ३३ | भाग अधिक सागरोपम सागरोपम उत्कृष्ट १० साग- | पल्योपमना रोपम पल्योपमना | असंख्यातमा असंख्यातमा भाग अधिक भाग अधिक तिर्यंच | जघन्य उत्कृष्ट अंत. →एवम् | →एवम् | →एवम् →एवम् →एवम् मनुष्य | जघन्य उत्कृष्ट अंत. →एवम् | →एवम् | →एवम् | →एवम् | छद्मस्थ एवम्, केवली जघन्य अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्ट ऊन पूर्व कोटि भवनपति | ज० दस हजार | ज० कृष्णकी | ज० नीलकी | ज० दश व्यन्तर | वर्ष, उ० पल्योपमना | उत्कृष्ट से १ समय उत्कृष्ट से १ | हजार वर्ष, असंख्यातमें भाग अधिक, उ० समय अधिक, उ०१ पल्योपमना |उ० पल्योप- | सागरोपम असंख्यातमें मना असंख्या- 'झझेरी अने. भाग । तमे भाग | व्यंतरकी स्वयं ऊह्यम् जोतिषी ज० पल्यो पमनो८ भाग, उ० १ पल० लक्ष वर्ष अधिक वैमानिक ज०१ पल्योपम, | तेजोकी सागरोपम उ०२ उत्कृष्टी |१ समय सागरोपम से १ अधिक, समय | उ० ३३ अधिक, सागरोपम उ०१० सागरोपम अंतर्मुहूर्त अधिक ज० ज०१० झझेरी १. अधिक।
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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