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________________ २ नवतत्त्वसंग्रहः (११) 1भगवती श० १ उद्देशे २ कालयन्त्रम् शून्यकाल | अशून्य काल मिश्र काल संतिष्ठन काल नारकी ३ अनंत गुणा १ सर्व स्तोक | २ अनंत गुणा | २ असंख्यात गुणा ___१२ मुहूर्त तिर्यंच १ सर्व स्तोक अंत- | २ अनंत गुणा ४ अनंत गुणा मुहूर्त त्रस आश्री मनुष्य ३ अनंत गुणा १ सर्व स्तोक | २ अनंत गुणा १ सर्व स्तोक १२ मुहूर्त देव । ३ अनंत गुणा सर्व स्तोक २ अनंत गुणा ३ असंख्येय गुणा १२ मुहूर्त १ (१२) अथ षट् लेश्या द्वार उत्तराध्ययन ३४ में वा श्रीपन्नवणा पद १७ परथी ज्ञेयं नाम | कृष्ण लेश्या । नील लेश्या | कापोत लेश्या | तेजोलेश्या | पद्म- शुक्ल लेश्या ३ | ४ लेश्या ५ ६ वर्ण द्रव्य-| काली घटा १ महिष | अशोक वृक्ष १ | अलसीना फूल | हिंगुल १ | हरिताल | संख १ लेश्या | शृंग गुली २ शकटना| नील चासना | १ कोकिलानी | धातु १ हलद्री | अंकरत्न २ अपेक्षा २ | खंजन ३ नेत्रनी | पंक्ष २ वैडूर्य मणि| पंक्ष २ परेवानी | पाषाण वि- | २ सण ३/ मचकुंद कीकी ४ इन सदृश | ३ शुक पंक्ष ४ | ग्रीवा ३ ऐसा | शेष रक्त २ | असन ए| पुष्प दधि वर्ण कृष्ण । ऐसा वर्ण । वर्ण उगता सूर्य | वृक्षना | रूपाना तेजोलेश्या | पुष्पवत् | हारवत् पीत शुक्ल जीवस्स आरंभिया कि० तस्स अपच्च० सिय क० सिय नो क०, जस्स पुण अपच्च० क० तस्स आरंभिया कि० णियमा क०, एवं मिच्छादंसणवत्तियाए वि समं, एवं पारिग्गहिया वि तिहिं उवरिल्लाहिं समं संचारेतव्वा, जस्स माया कि० तस्स उवरिल्लाओ दो वि सिय कज्जंति सिय नो कज्जंति, जस्स उवरिल्लाओ दो कज्जंति तस्स माया० नियमा क० जस्स अपच्च० कि० क० तस्स मिच्छा० कि० सिय क० सिय नो क०, जस्स पुण मिच्छा० कि० तस्स अपच्च० कि० णियमा कज्जति" । (सू० २८४) 1. "नेरइयसंसारसंचिट्ठणकाले णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? । गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं०-सुन्नकाले, असुन्नकाले, मिस्सकाले ॥ तिरिक्ख जोणियसंसारपुच्छा, गो० ! दुविहे प० तं०-असुन्नकाले य मिस्सकाले य, मणुस्साण य देवाण य जहा नेरइयाणं ॥ एयस्स णं भंते ! नेरइयसंसारसंचिट्ठणकालस्स सुन्नकालस्स असुन्नकालस्स मीसकालस्स य कयरे कयरे हितो अप्पा वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए वा? । गो० ! सव्वत्थोवे असुन्नकाले, मिस्सकाले अणंतगुणे, सुन्नकाले अणंतगुणे । तिरिक्ख० भंते ! सव्व० असुन्न०, मिस्स० अणंत०, मणुस्सदेवाण य जहा नेरियाणं ।। एयस्स णं भंते ! नेरइयस्स संसारसंचिट्ठणकालस्स जाव देवसंसारसंचिट्ठणजाव विसेसाहिए वा? । गो० ! सव्व० मणुस्ससंसारसंचिट्ठणकाले, नेरइयसंसार० असंखेज्जगुणे, देवसंसार० असं०, तिरिक्खजोणिए अणंत०" || (सू० २३) १. पांख । वर्णतः
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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