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________________ ४६२ नवतत्त्वसंग्रहः (१७१) अथ जघन्यरसबन्धयन्त्रम् प्रकृति बन्धस्वामि स्त्यानद्धि १, प्रचलाप्रचला १, निद्रानिद्रा १, संयम सन्मुख मिथ्यात्वीअनंतानुबंधि ४, मिथ्यात्व १. अप्रत्याख्यान ४ अविरतिसम्यग्दृष्टि संयम सन्मुख प्रत्याख्यान ४ देशविरति अरति १, शोक १ प्रमत्त यति आहारकद्विक २ अप्रमत्त यति निद्रा १, प्रचला १, शुभ वर्णचतुष्क ४, हास्य १, अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ती क्षपक रति १, जुगुप्सा १, भय १, उपघात १ पुरुषवेद १, संज्वलनचतुष्क ४ नवमे गुणस्थानवाला क्षपक अंतराय ५, ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ४ १० मे गुणस्थाने क्षपक सूक्ष्मत्रिक ३, विकलत्रिक ३, आयु ४ वैक्रियकषट् ६ मनुष्य, तिर्यंच उद्योत १, औदारिकद्विक २ देवता, नारकी तिर्यंच गति १, तिर्यंचानपर्वी १. नीच गोत्र १ सातमी नरके उपशमसम्यक्त्वके सन्मुख जिननाम १ अविरतिसम्यग्दृष्टि एकेंद्री १, थावर १ नरक विना तीन गतिना आतप १ सौधर्म लगे देवता साता १, असाता १, स्थिर १, अस्थिर १, समदृष्टि वा मिथ्यादृष्टि परावर्त्तमान शुभ १, अशुभ १, यश १, अयश १ मध्यम परिणाम त्रस १, बादर १, पर्याप्त १, प्रत्येक १, अशुभ वर्ण चार गतिका मिथ्यात्वी बांधे आदि चतुष्क ४, तैजस १, कार्मण १, अगुरुलघु १, निर्माण १, मनुष्यगति १, मनुष्यानुपूर्वी १, शुभ विहायोगति १, अशुभविहायोगति १, पंचेंद्री १, उच्छ्वास १, पराघात १, उच्चगोत्र १, संहनन ६, संस्थान ६, नपुंसकवेद १, स्त्रीवेद १, सुभग १, सुस्वर १, आदेय १, दुर्भग १, दुःस्वर १, अनादेय १ इति रसबन्ध समाप्त. (१७२ ) अथ प्रदेशबन्धयन्त्रम्, मूल प्रकृतिना उत्कृष्ट प्रदेशबन्धस्वामि शतकात् मोहनीय १।४।५।६।७ गुणस्थानवर्ती आयु, मोहनीय वर्जी ६ कर्म १० गुणस्थानवर्ती
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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