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________________ ३९२ नवतत्त्वसंग्रहः (१३७) औदारिक शरीरके सर्वबंध, देशबंधका अंतरा २ सर्वबंधका अंतरा देशबंधका अंतरा समुच्चय औदारिक ज० ३ समय ऊणा क्षुल्लक भव ज०१ समय, उ०३ समय १, उ० ३३ सागर पूर्व कोड -अधिक ३३ सागर १ समय अधिक समुच्चय एकेन्द्रिय ज० ३ समय ऊणा क्षुल्लक भव ज०१ समय, औदारिक १, उ० १ समय अधिक उ० अंतर्मुहूर्त १ २२,००० वर्ष पृथ्वीके औदारिकका ज०३ समय ऊणा क्षुल्लक भव १, ज०१ समय, उ०३ समय उ० १ समय अधिक २२,००० वर्ष अप्, तेउ, वणस्सइ, ज०३ समय ऊणा क्षुल्लक ज०१ समय, उ० ३ समय बेइंद्री, तेइंद्री, चौरिंद्री भव १, उ० १ समय अधिक जिसकी जितनी स्थिति वायु औदारिक ज० ३ समय ऊणा क्षुल्लक ज०१ समय, भव, उ० समय अधिक ३,००० वर्ष उ० अंतर्मुहूर्त पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य ज०३ समय ऊणा क्षुल्लक ज०१ समय, भव, उ० पूर्व कोड १ समय अधिक उ० १ अंतर्मुहूर्त जीव एकेन्द्रियपणा छोडी नोएकेन्द्रिय हुया फेर एकेन्द्रिय होय तो सर्वबंध, देशबंधना कितना अंतर ए (१३८) यंत्रम् सर्वबन्धान्तरम् देशबन्धान्तरम् एकेन्द्रिय नोएकेन्द्रिय ज०३ समय ऊणा २ क्षुल्लक ज०१ समय अधिक १ फेर एकेन्द्रिय हुया भव, उ०२,००० सागर क्षुल्लक भव, उ०२,००० संख्याते वर्ष अधिक सागर संख्याते वर्ष अधिक पृथ्वी, अप, तेउ, वाउ, ज०३ समय ऊणा २ क्षुल्लक ज०१ समय अधिक १ बेइंद्री, तेइंद्री, चौरिंद्री भव, उ० वनस्पतिकाल क्षुल्लक भव, उ० वनस्पतिकाल तिर्यंच पंचेंद्री, मनुष्य असंख्य पुद्गलपरावर्त __ असंख्य पुद्गलपरावर्त । वनस्पति ज० ३ समय ऊणा २ क्षुल्लक ज० २ क्षुल्लकभव, भव, उ० असंख्याती ३, वनस्पतिकाल ___ अवसर्पिणी उत्सर्पिणी (१३९) औदारिक शरीरके सर्वबंध, देशबंध, अबंधककी अल्पबहुत्व देशबंध सर्वबंध _अबंधक असंख्य गुणा ३ सर्वसे स्तोक १ विशेषाधिक २ ए औदारिकका यंत्र चौथा इति औदारिक.
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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