SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 417
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८२ नवतत्त्वसंग्रहः | ४०० | ३०० विमानसङ्ख्या ___३२ | २८ | १२ | लाख । लाख लाख ८ | ४ | ५० | ४० | लाख लाख सहस्त्र सहस्त्र सहस्त्र २७०० | २७०० २६०० २६००/२५०० २५००२४०० २४००|२३०० २३०० पृथ्वीपिंड विमान ६०० - ८०० | ८०० / ९०० ५०० | ५०० यो. | उच्चत्व विष्कंभ | مر संख्येय असंख्य विमान ए | व | مر विमानवर्ण به १३ प्रतर ६२ आवलि चिह्न १३ । १३ । १२ १२ | ६ | ५ | ४ | ४ मग महिष वराह | सिंह | छाग | शालूर - हय | भुजग वृषभ जाति शशी | विशेष मृग कनक | कनक पद्म | पद्म | पद्म | श्वेत | श्वेत | श्वेत | श्वेत पालक पुष्कक| सौमनस | श्रीवत्स | नंद्यावर्त | कामगम प्रीतिमन | विमल वर | सर्वतोभद्र सुधर्म | ईशान | सनत्कु- माहेन्द्र | ब्रह्म | लांतक महा | सहस्रार | प्राणत | अच्युत मार शरीरवर्ण यान विमान इन्द्र शुक्र सामानिक आत्मरक्षक त्रायस्त्रिंश लोकपाल अनीक देवी अग्रमहिषी परिषद् - - | → | ए | व | म् | कंदर्प किल्बिषिक आभियोगिक
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy