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________________ ३७२ नवतत्त्वसंग्रहः (१२२) अथ व्यंतर १६ का यंत्र तिर्यग् लोके चिंतवे व्यंतरनाम महोरग । गान्धर्व पिशाच | भूत | यक्ष | राक्षस | किन्नर | किंपुर (रुष) असंख्य जंबूद्वीप नगरसंख्या 4I4 नगरपरि || माण मध्यम् विदेह । जघन्य भरतक्षेत्र । चिह्न कलंब सुलस | वड वृक्ष| तापसपात्र | अशोक | चंपग | | नाग | तुंबरु वर्ण श्याम श्याम | श्याम धवल | नील । धवल | श्याम श्याम इन्द्र काल सरूप भीम | किन्नर | सत्पुरुष |अतिकाय | | गीतरति महाकाल | प्रतिरूप | मणिभद्र| महाभीम | किंपुरुष | महापुर- | महाकाय | गीतयश सामानिक ४००० आत्मरक्षक] १६,००० अनीक अग्रमहिषी परिषद् व कुहुंड पयंगदेव व्यंतर लघु | अणपन्नी | पणपन्नी | इसिवाइ| भूयवाइ | कंदिय | महा कंदिय संनिहिय | धाइ | इसि | ईसरप | सुवत्स | हास्य पयंग श्वेत १३ ११ १५ पयगे समाणि | विधाइ | इसिपाल| महेष सुविशाल | हास्य रति १२ १० १४
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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