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________________ ३५८ नवतत्त्वसंग्रहः ___अथ विपाकविज(च)यकरम सभावथित रस परदेस मित मन वच काये धित सुभासुभ कर्यो है मूल आठ भेद छेद एकसो अठावना है निज गुन सब दबे प्राणी भूल पर्यो है राजन ते रंक होत ऊंच थकी नीच गोत कीट ने पतंग भंग नाना रूप धर्यो है छेदे जिन कर्म भ्रम ध्यानकी अगन गर्म मानत अनंग सर्म धर्मधारी ठर्यो है ३ ___अथ संठाणविज(च)यआदि अंत बेहूं नही वीतराग देव कही आसति दरब पंचमय स्वयं सिद्ध है। नाम आदि भेद अहुपुव्व धार कहे वहु अधो आदि तीन भेद लोक केरे किद्ध है षिति वले दीप वार नरक विमानाकार भवन आकार चार कलस महिद्ध है आतम अषंड भूप ग्यान मान तेरो रूप निज दृग षोल लाल तोपे सब रिद्ध है ४ इस सवईयेका भावार्थ आगे यंत्रोमे लिखेंगे तहांसे जानना इति संस्थानविज(च)य इति 'ध्यातव्य' द्वार ८. अथ 'अनुप्रेक्षा' द्वार-ध्यान कर्या पीछे चितना ते 'अनुप्रेक्षा.' सवईया ३१ सा, समुद्रचिंतनआपने अग्यान करी जम्म जरा मीच नीर कषाय कलस नीर उमगे उतावरो रोग ने विजोग सोग स्वापद अनेक थोग धन धान रामा मान मूढ मति वावरो मनकी घमर तोह मोहकी भमर जोह वातही अग्यान जिन तान वीचि धावरो संका ही लघु तरंग करम कठन दंग पार नही तर अब कहूं तो हे नावरो १ अथ पोतवरननसंत जन वणिग विरतमय महापोत पत्तन अनूप तिहा मोषरूप जानीये अवधि तारणहार समक बंधन डार ग्यान है करणधार छिदर मिटानीये तप वात वेग कर चलन विराग पंथ संकाकी तरंग न ते षोभ नही मानीये सील अंग रतन जतन करी सौदा भरी अवाबाध लाभ धरी मोष सौध ठानीये २ इति अनुप्रेक्षा द्वार ९. अथ अनुप्रेक्षा चार कथन, सवैया ३१ साजगमे न तेरो कोउ संपत विपत दोउ ए करो अनादिसिद्ध भरम भलानो है जासो तूंतो माने मेरो तामे कोन प्यारो तेरो जग अंध कूप झेरो परे दुख मानो है मात तात सुत भ्रात भारजा बहिन आत कोइ नही त्रात थात भूल भ्रम ठानो है थिर नही रहे जग जग छोर धम्म लग आतम आनंद चंद मोष तेरो थानो है ३ इति अनुप्रेक्षा द्वार ९. अथ 'लेश्या' द्वारकथन, दोहरापीत पउम ने सुक्क है, लेस्या तीन प्रधान, सुद्ध सुद्धतर सुद्ध है, उत्कट मंद कहान १ इति लेश्याद्वार १०. अथ 'लिंग' द्वार, सवैया इकतीसाधमा धम्म आदि गेय ग्यान केरे जे प्रमेय सत सरद्धान करे संका सब छारी है आगम पठन करी गुरवैन रिदे धरी वीतराग आन करी स्वयंबोध भारी है
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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