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________________ ३२६ नवतत्त्वसंग्रहः आपने कमाये पाप भोगनमे आपे आप अंग जरे कुष्ट भरे इंदुवत आनने आपने करम करी दुष रोग पीर परी मिथ्यामति कहे ए तो कीये भगवानने २ अथ 'संवर' भावनाहिरदेमे ज्ञान धर पापमंथ परहर निहचे सरूप कर डर जर करसे आवत महान अघ रोध कर हो अनघ आपने विकार तज भज कर भरसे करम पटल ढग तिन माही देह अगनि कसत गुन दग आप परठरसे करम भरम जावे मोद मन बोध पावे ऐसा रसरसीया ते आ रसकू परसे १ सत मत नव तत भेदाभेदवित हित मीत जीत तीन नित तीन तेरे बोधके तीन चीन मीन लीन उदक प्रवीन पीन खीन दीन हीन तज रजक जुं सोधके सत्ताको सरूप जान परणत भ्रम मान निज गुन तान जेही महानंद सोधके भ्रमजाल परहरे काहुकी न भीत करे संजमके बारे मारे कर्म सारे रोधके २ अथ 'निर्जरा' भावनाजैसे न्यारी सुध रीत छानत कनक पीच डारत असुध लीत मोद मन कर्यो है तैसी ही सुधार यार करम पकार डार मार मार चार यार लार तेरे पर्यो है जोलों चित रीत नाही तोलों मिटे भीत नाही कुगुर डगर वीच लूटवेको ष(?प)र्यो है आतम सियाने वीर करमकी मिते पीर परम अजीत जीत सिवगढ चर्यो है १ सत जत सील तप करम भरम कप वासना सनेह गेह चितमे न धरीये नरक निगोद रोग भोगत अनंत काल माया भ्रम जाल लाल भवदधि तरिये संकटमे पर्यो दुष भर्यो मर्यो वसुधामे चर्यो जगछोर भोर अब मन डरिये चारत कंकन धर दोस दृष्ट दूर कर अरहत ध्यान कर मोष(क्ष)वधू वरिये २ । अथ 'लोकस्वरूप' भावनाजामाधार नराकार भामरी करत यारह लोकाकार रूप धार कह्या करतार रे राज दस चार जान ऊंचताको परिमान अधो विसतार राज सात है पतारने घटत घटत मृत मंडलमे एक राज पंचम सुरग मध्य पांच राज धारने । आदि अंत नही संत स्वयं सिद्धरूप ए तो षट द्रव्य वास एही आपत उचारने १ नरक भवन षिति तनुवात घन मिति वसत पतार वार करमके दोषमे षिति आप तेज वात वन रन त्रस घन विगल तिगल पसु पंषी अहि रोषमे नर नारी भेस धारी धरम विहारी सारी वीतराग ब्रह्मचारी नारी धन तोषमे सुरगन सुषमन नाटक करत धन धन धन प्रभु सिद्ध पूरे सुष मोषमे २ अथ 'धर्म' भावनाषिमा धर तोष कर कपट लपट हर मान अरि मार कर भार सब छोरके सत परिमान कर पाप सब छार कर करम इंधन जर तप धूनी जोरके
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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