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________________ ३०४ नवतत्त्वसंग्रहः ० अरति स्त्री । चा अस्ति ६ अस्ति ६ १० नैषेधिकी अस्ति ७ अस्ति ७ शय्या आक्रोश १२ १३ वध अस्ति ८ अस्ति ८ १४ । याचना चारित्रमोहके उदय चारित्रमोहके उदय वेदनीयके उदय चारित्रमोहके उदय वेदनीयके उदय चारित्रमोहके उदय वेदनीयके उदय चारित्रमोहके उदय अंतरायके उदय वेदनीयके उदय वेदनीयके उदय : वेदनीयके उदय चारित्रमोहके उदय ज्ञानवरणके उदय ज्ञानवरणके उदय दर्शनमोहके उदय १५ | अलाभ १६ । रोग अस्ति ९ अस्ति १० अस्ति ११ अस्ति १२ तृणस्पर्श अस्ति ९ अस्ति १० अस्ति ११ १८ मल सत्कारपुरस्कार ० प्रज्ञा ० अस्ति १३ अस्ति १४ ० अज्ञान दर्शन ० ० । ॥ - सत्ता २२ | ० १४ ११ वेदे एक साथे २०, बावीसमे चा शीत होय तो उष्ण शीत, उष्णमेसु एक, निसिहिया एकतर, नही, उष्ण होय तो चर्या, शय्यामेसु एकशीत-उष्ण एकतर. __ शीत नही, चा, तर, एवं ९ वेदे. एवं शय्या एकतर, एवं १९ । अयोगी पिण कोइ कहै जोकर कोइ पुरुष शीत कालमें अग्नि तापे है सो तिसके एक पासे तो उष्ण परीषह है अने एक पासे शीत लगे है, तो युगपद् दोनो परीषह कयुं न कहै ? तिसका उत्तरएह दोनो परीषहकी विवक्षा शीत काल अने उष्ण कालकी अपेक्षा है, कुछ अग्निकी ताप अपेक्षा नही इति वृत्तौ, और परीषहकी चर्चा भगवतीजीकी टीकामे (पृ. ३८९) मे स्वरूप कथन किया है सोइ तिहांसे लिख्यते "जं समयं चरिया० नो तं समयं निसिहिया०" (भग० श. ८, उ. ८ सू. ३४३) इत्यादि. तिहां 'चर्या परीषह तो ग्राम आदिकमे विहार अने 'नैषेधिकी' परीषह ग्राममे मासकल्प आदि रहणा अने 'शय्या' परीषह उपाश्रयमे जाकर बैसणा. इस अर्थ करकेइ इस कारण विहार अने अवस्थान अर्थात् तिष्ठने करके परस्पर विरोध है. इस वास्ते एक कालमे नही संभव है. अथ १. यत् समये चर्या० न तत्समये नैषेधिका० ।
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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