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________________ ३२ ४६६ (२०४) अथ उत्तर प्रकृतिना उत्कृष्ट प्रदेशबंधयंत्र शतककर्मग्रन्थात् (कोष्टक-१७३) ४६४ ૪૬૫ (२०५) अथ जघन्यप्रदेशबन्धस्वामियन्त्रम् (कोष्टक-१७४) ४६४ ૪૬૫ (२०६) अथ सात बोलकी अल्पबहुत्व (कोष्टक-१७५) ४६४ ४६५ (२०७) जीव बंधवर्गणा ग्रहे तिसका कर्मपणे वांटा (कोष्टक-१७६) ४६४.--.४६५ (२०८) (कोष्टक-१७७) ४६४ ૪૬૫ (२०९) (कोष्टक-१७८) ४६७ ( २१०) अथ अग्रे बन्धकारणं लिख्यते कर्मग्रन्थात् ४६६ ४६७ (२११) अथ पंचसंग्रह थकी युगपत् बंधहेतु लिख्यते ४७० ४७१ (२१२) (९) अथ अग्रे 'मोक्ष' तत्त्व लिख्यते ४८२ ४८३ (२१३) अथ गुणश्रेणि-रचनायन्त्रं शतकात् (कोष्टक-१९८) ४८२ ४८३ ( २१४) उप( शम )श्रेणियन्त्रम् आवश्यकनिर्युक्तेः (कोष्टक-१८०) ४८२ ४८३ (२१५) (कोष्टक-१८१) ४८४ ૪૮૫ (२१६) अथ सीझणद्वार लिख्यते श्रीपूज्यमलयगिरिकृत नंदीजीकी वृत्तिथी (कोष्टक-१८२) ४८४ ४८५ (२१७) क्षेत्रद्वार, अंतरद्धार लिख्यते. सांतर (कोष्टक-१८३) ४८८ ४८८ (२१८) अथ परम्परासिद्धस्वरूपं लिख्यते ४९० ૪૯૧ (२१९) (कोष्टक-१८४) ૪૯૧ (२२०) (कोष्टक-१८५) ४९२ ४८३ ( २२१) अथ तीनो द्वीपकी मिलायके अल्पबहुत्वयंत्रम्. ए तीनो यंत्र परंपरासिद्ध (कोष्टक-१८६) ४९२ ૪૯૩ (२२२) (कोष्टक-१८७) ४९२ ४८३ (२२३) अथ आगे कालद्वारे परंपरासिद्धांकी अल्पबहुत्व लिख्यते-(कोष्टक-१८८) ४९२ ૪૯૩ ( २२४) अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी दोनाकी एकठी अल्पबहुत्वयन्त्रम् (कोष्टक-१८९) ४९२ (२२५) गतिद्वारे (कोष्टक-१९०) ४९२ ४८ (२२६) (कोष्टक-१९१) ४९४ ૪૯૫ (२२७) (कोष्टक-१९२) ४९६ ४८७ (२२८) अथ ग्रंथसमाप्ति सवईया इकतीसा ४९८ ४८८ (२२९) परिशिष्ट-१ उपदेशबावनी ૫૦૩. ४९० ४८३ ५०२
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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