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________________ २९४ ७ ८ ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ ज्ञान तीर्थ लिंग शरीर क्षेत्र गति, स्थिति, पदवी पा २|३|४ प्रवचन, ज० ८ प्रवचन, १४ पूर्व पठन करे अतीर्थे वा द्रव्ये ३, भावे १ स्वलिंग काल कुशवत् अव - सर्पिणी उत्स र्पिणी भावनीय अल्प बहुत्व ५. जन्म आश्री कर्मभूमि, संहरण आश्री सर्वत्र विराधक चार जातके देव तामे, आराध ज० सौधर्म, उ० सर्वार्थसिद्ध स्थिति ज० २ पल्योपम, उ० ३३ सागरोपम, पदवी पांचसू अन्यतर १ असंख्याते ४ संयमस्थिति असंख्यगुणे सामायिक वत् तीर्थे सामायिक वत् ५ जन्म कर्म ०, संह० सर्वत्र एवं बकुशवत्, नवरं जन्म महाविदेह नही सामायिक वत् सामायिक वत् असंख्याते ४ तुल्य २|३|४ ज्ञान, प्रवचन, ज० ९ पूर्व, उ०१० मठेरा तीर्थे द्रव्ये भावे १ स्वलिंग ३ औ, तै, का. कर्मभूमि संहरण नहीं पुलाकवत् ज० सौधर्म, उ०८ मा देव लोक ज० पल्यो पम, उ०१८ सागरोपम, पदवी ४ मे अनंतर एकाय असंख्याते ३ असंख्यगुणे २|३|४ ज्ञान, प्रवचन ज० ८, उ० १४ पूर्व तीर्थे अतीर्थे द्रव्ये ३, भावे १ स्वलिंग ३ औ, तै, का. जन्म० कर्म०, संह० सर्वत्र निर्ग्रन्थवत् ज० उ० पंच अनुत्तरेषु उत्पद्यते ज०, उ० ३३ सागरोपम पदवी एकअहमिन्द्रकी असंख्याते अंतर्मुहूर्त समय तुल्य २ असंख्यगुण १. पांच अनुत्तरोमां उत्पन्न थाय छे। २. 'अनुत्तर' विमानमां अथवा सिद्ध गतिमां । नवतत्त्वसंग्रहः २|३|४|१ ज्ञान, प्रवचन, ज० ८, उ० १४ पूर्व श्रुताती तीर्थे अतीर्थे द्रव्ये ३, भावे १ स्वलिंग ३ औ, तै, का. जन्म० कर्म०, संह० सर्वत्र निर्ग्रन्थवत् सर्व जानना 'अनुत्तरविमाने वा सिद्धगतौ ज०, उ० ३३ सागरोपम, पदवी एक अहमिन्द्र एक्यं १ स्तोक
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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