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________________ २९२ नवतत्त्वसंग्रहः पतिपद्यमान । गुणा | प्रतिपाद्यमान | बकुशवत् | प्रतिपद्यमान | प्रतिपद्यमान | प्रतिपद्यमान णाम | सिय अत्थि, | होवे, नही बी होवे बी, नही | होवे बी, नही |स्याद् अस्ति, सिय नत्थि, | होवे, जोकर बी होवे, जो | बी होवे, जो स्याद् नास्ति, जदि अत्थि | होवे तो ज० १, होवे तो ज० होवे तो यद्यस्ति तदा ज० १, २, ३, | २, ३, उ० पृथक् १,२, ३, उ० ज० १, २, ३, | ज० १, २, उ० पृथक् शत, | शत, पूर्वप्रति पृथक् सहस्र, | उ० १६२ तिनमे | ३, उ० पूर्वप्रतिपन्न | पन जघन्य, पूर्वप्रतिपन्न |१०८ क्षपक ५४ ८०० "स्याद् अस्ति उत्कृष्ट पृथक् जघन्य, | उपशम, पूर्व- | पूर्वप्रतिपन्न "स्याद् नास्ति ___ शतकोटि उत्कृष्ट पृथक् | प्रतिपन्न होवे | ज० उ० यद्यस्ति ज० सहस्र कोटि | बी, नही बी | पृथक् १, २, ३, उ० होवे, होवे तो | कोटि पृथक् सहस्र ज० १, २, ३, उ० पृथक् शत ३६ अल्प २ संख्येय | ४ संख्येय |५ संख्येय | ६ संख्येय | १ स्तोक | ३ संख्येय बहुत्व गुणा | गुणा । गुणा | गुणा (११३) अथ श्रीभगवती (श. २५, उ. ७) थी संयत ५ यंत्रम् प्रज्ञापन | सामायिक छेदोपस्थाप- परिहार- सूक्ष्म- यथाख्यात ५ नीय २ विशुद्धि ३ सम्पराय ४ वेद | ३ वेद, अवेदी सामायिक- पुरुषवेद १, कृत उपशांतवेद, उपशांतवेद, वा नपुंसकवेद २ | क्षीणवेद क्षीणवेद राग सरागी-→ उपशांतराग क्षीणराग कल्प स्थितकल्प १, | स्थितकल्प १,| स्थितकल्प १, स्थितकल्प १, | स्थितकल्प १, अस्थित २, | अस्थित २, | अस्थित २, | अस्थितकल्प | अस्थितकल्प जिनकल्प ३, | जिनकल्प ३, | जिनकल्प ३, २, कल्पातीत | २, कल्पातीत स्थविर ४, | स्थविरकल्प ४] स्थिवरकल्प ४, ३ । कल्पातीत ५ पुलाकादि आद्य ४ आद्य ४ कषाय कषाय कुशील १ कुशील १ स्नातक २ मूलगुण १, सामायिक- अप्रति अप्रति- अप्रतिसेवी सेवना उत्तरगुण २, सेवी सेवी सेवे पं(ख)डे, अप्रतिसेवी ३ १. कथंचित् होय । २. कथंचित् न होय । ३. जो होय । ४, ५, ६ अनुक्रमे १, २, ३ प्रमाणे । वत् निर्ग्रन्थ १, षट् प्रति वत्
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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