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________________ २६० चल एकवचने नवतत्त्वसंग्रहः (९८) अंतरयंत्रं भग० सू०७४४ परमाणु-पुद्गल द्विप्रदेश आदि-अनंत प्रदेश पर्यंत जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट स्वस्थाने १ समय असंख्य काल १ समय | असंख्यात काल परस्थाने १ समय असंख्य काल १ समय । अनंत काल स्वस्थाने १ समय आवलि १ समय | आवलि असंख्य असंख्य भाग भाग परस्थान १ समय असंख्य काल । १ समय । अनंत काल चल नास्ति अंतरं नत्थि नत्थि | नत्थि अचल नास्ति अंतरं नास्ति अंतरं सर्वत्र १ समय | असंख्य काल| असंख्य काल १ समय | उत्कृष्ट असंख्य काल अचल एकवचने बहुवचने अंतर समुच्चये | देशैज (९९) कालमान स्थितमान यंत्रम् भग० श० २५, उ० ४ (सू० ७४४) परमाणु द्विप्रदेशादि अनंत प्रदेशी पर्यंत जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट १ समय आवलिके असंख्यमे भाग एकवचने सर्वैज । १ समय आवलिके १ समय आवलिके असंख्यमे भाग असंख्यमे भाग निरेज १ समय असंख्य काल | १समय | असंख्य काल 'बहुवचने देशैज सर्वाद्धा सर्वाद्धा (१००) अंतर मानका यंत्र (भग० सू० ७४४) परमाणु द्विप्रदेशादि-अनंत प्रदेशी पर्यंत जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट देशैज स्वस्थाने १ समय | असंख्य काल परस्थाने १ समय अनंत काल सर्वैज स्वस्थाने १ समय | असंख्य काल | १ समय असंख्य काल परस्थान १समय । | असंख्य काल । १ समय अनंत काल सर्वाद्धा सर्वाद्धा १. परमाणुपुद्गलो तेमज द्विप्रदेशादि स्कंधो सर्व अंशे सदा काल कंपे तेमज सदा काल निष्कंप रहे। ००
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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