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________________ ३२२ ३२८ ३३६ ૩૨૩ ૩૨૯ ૩૩૧ 339 ૩૩૯ ૩૩૯ ૩૪૧ ३४८ ३४८ ૩૫૧ ૩૫૧ ૩૬૫ उ६९ ૩૭૧ 393 ३७४ ૩૭૫ ૩૭૫ ૩૭૫ (१३६) अथ द्वादशभावनास्वरूप. दोहरा (१३७) अथ प्रत्याख्यानस्वरूप ठाणांग, आवश्यक, आवश्यकभाष्यात् (१३८) १५ भेद पाण विना द्वार दूजा आगार संख्या (कोष्टक-११८) ३३० (१३९) अथ २२ अभक्ष्य लिख्यन्ते (१४०) अथ बत्तीस अनंतकाया ३३८ (१४१) अथ पच्चक्खाणकी ६ शुद्धि ३३८ (१४२) अथ आगे श्रावकके बारह व्रतांके सर्व भंगका स्वरूप लिख्यते ३४० (१४३) सप्तचत्वारिंशत्शतभङ्गाः-प्रथमव्रते सप्तचत्वारिंशतशतं भंगा: द्विकादिसंयोगे अष्टत्वारिंशत्शतगुणितं सप्तचत्वारिंशत्शतप्रक्षेपक्रमेण तावद् । (कोष्टक-११९ ) (१४४) अथ 'निर्जरा' तत्त्व लिख्यते ३५० (१४५) अथ ध्यानस्वरूप दोहरा ३५० (१४६) अथ घनीकृत लोकरूप लिख्यते ३६४ (१४७) अथ अर्धालोकमे नाम आदि नरकका स्वरूप चिंतवे तेहना यंत्रम् (कोष्टक-१२०) ३६८ (१४८) अथ दशभवनपतियंत्रम् (कोष्टक-१२१) ३७० (१४९) अथ व्यंतर १६ का यंत्र तिर्यग् लोके चिंतवे (कोष्टक-१२२) ३७२ (१५०) ज्योतिषचक्रस्वरूप चिंतवे यंत्रम् (कोष्टक-१२३) (१५१) (कोष्टक-१२४) ३७४ (१५२) (कोष्टक-१२५) ३७४ (१५३) (कोष्टक-१२६) ३७६ (१५४) (कोष्टक-१२७) ३७६ (१५५) हैमवंत १ शिखरीकी दाढा चार, चार, तिस उपरि सात सात अंतरद्वीप (कोष्टक-१२८) ३७८ (१५६) (कोष्टक-१२९) ३८० (१५७) नन्दीश्वरद्वीपयंत्रम् स्थानांगचतुर्थस्थानात् (कोष्टक-१३०) ३८० (१५८) अथ ऊर्ध्वलोके स्वरूपचिंतनयंत्र. प्रथम बारदेवलोके देवता (कोष्टक-१३१) ३८० (१५९) सौधर्म देवलोक अपरिगृहीत देवीना विमान ६ लाख, ते किणि किणि देवलोकि भोग आवे ते यंत्रम् (कोष्टक-१३२) (१६०) ईशान देवलोके अपरिगृहीत देवीना विमान ४,ते किस किसके ? (कोष्टक-१३३) ३८४ (१६१) अथ ९ ग्रैवेयक, ५ अनुत्तरविमानयंत्रम् (कोष्टक-१३४) (१६२) असज्झाइ स्थानांग, निसी[ ह]थ, प्रवचनसारोद्धार (द्वा. २६८) थकी (कोष्टक-१३५) (१६३) (८) अथ अग्रे 'बन्ध' तत्त्व लिख्यते ३९० (१६४) औदारिक शरीरना सर्वबंध, देशबंधनी स्थिति (कोष्टक-१३६) ३९० (१६५) औदारिक शरीरके सर्वबंध, देशबंधका अंतरा (कोष्टक-१३७) ३९२ (१६६) जीव एकेन्द्रियपणा छोडी नोएकेन्द्रिय हुया फेर एकेन्द्रिय होय तो सर्वबंध, देशबंधना कितना अंतर ए यंत्रम् (कोष्टक-१३८) ३९२ (१६७) औदारिक शरीरके सर्वबंध, देशबंध, अबंधककी अल्पबहुत्व (कोष्टक-१३९) ३९२ (१६८) वैक्रिय शरीरके सर्वबंध, देशबंधनी स्थिति (कोष्टक-१४०) ३९४ उ७७ उ७७ उ७८ ૩૮૧ ૩૮૧ ૩૮૧ ३८४ ૩૮૫ ૩૮૫ ૩૮૫ ३८४ ३८६ ३८७ ૩૯૧ ૩૯૧ ૩૯૩ ૩૯૩ ૩૯૩ ૩૯૫
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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