SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४६ नवतत्त्वसंग्रहः सर्व नही है. तिनका यथा स्वरूपकी स्थापना .. ऐसा स्वरूप है ए वात श्रीअनुयोगद्वारे है. अने सम बी है इति अलम्. हिवै पुद्गलके छव्वीस भंग्याकी स्थापना पन्नवणाजीकी (श्रीमलयमिरिसूरिकृत) टीकासे है ते यथा-परमाणु-पुद्गलमें १ भंग पावें तीजा अवक्तव्य, इदं (य) चस्थापना - दोप्रदेशीमें भंग २ पावें चरम एक, अवक्तव्य एक, इदं च स्थापना FE. :- त्रिप्रदेशीमें भंग ४ पावें १।३।९।११. स्थापना गर्ने चारप्रदेशीमें भंग सात १।३।९ १०।११।१२।२३।. ए स्थापना [नन्न व नाना - नापंचप्रदेशीमें १९ भंग. स्थापना १९३७०९।१०।११।१२।१३।२३।२४।२५. सपना पनि समानामा नाममा छ प्रदेशीमें १५ भंग लाभे ते. १।३।७।८।९।१०।११।१२।१३।१४।१९।२३।२४॥ २५।२६. एवं १५. इदं च स्थापना = In , 4 मज व जन जींना पर्ने सात प्रदेशी स्कंध, १७ भंग पावे. इदं च स्थापनार्जन जिन कि T TERT - आठ प्रदेशीमे १८. इदं च स्थापना नन जज न ! ET L न पीप EEL , WE एवं नवथी अनंतप्रदेशी पर्यंत ज्ञेयम्. (८५) श्रीप्रज्ञापना दशमे पदात् यंत्रं (८६) श्रीभगवतीके षोडशमे शते ८ मे उद्देशे १९ . २१ २४म विथी | गणे२ । ५ द्रव्यार्थे ज्ञेयं । प्रदेशार्थे अचरम | चरमाणि | अचरम | चरम प्रदेश || प्रदेश लोक | सर्व स्तोक | असंख्य | असंख्य | असंख्य । १ । गुणे २ | गुणे ७ | गुणे ५ अलोक | सर्व स्तोक | विशेषा- | अनंत | विशेषा १ | धिक ३ | गुणे ८ | धिक ६ तदुभय विशेषाधिक ४ विशेषाधिक ९ | द्रव्यार्थे । प्रदेशार्थे चार दिशा | असंख्येय | संख्येय गुणे चारमांत गुणे २ अधो | सर्व । संख्येय चरमांत स्तोक १ गुणे ४ उर्ध्व | सर्व असंख्येय चरमांत | स्तोक १ । गुणे ३
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy