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________________ २२८ नवतत्त्वसंग्रहः १उ श्रेणि उपशम | | ० ० ० ० ०० ०२ क्षपक पश ४ ४१ कल्प ५ ० ० ०० ०५५ ४ १५५/ चवके दंडके | २४ २१ / ० | १६ | १ | १ | १ | १ | जावे ६] पर्याप्ति ६ ४ |६६६६६६६ ४ १ ४ ४ | १| १ | ० | 0 | मोक्ष | » | | I ० | ० 3|or | ० wo०० ० For or orm or or १५७/ अनुव्रत १२ | ० ००१२००० १५८| महाव्रत ५ ० ० ०० ०५५५ १५९ सम्यक्त्वसामायिक १. श्रुतसामायिक २/ ० देशव्रतीसामायि-| ० क ३ सर्वव्रती सामायिक४ मोहना बंध- | भंग २१ or m . २२ ने बंधे भंग६ २१ ने बंधे भंग ४ १७ ने बंधे भंग २ १७ ने बंधे भंग २ १३ ने बंधे भंग २ ९ ने बंधे भंग २ ९ने बंधे भंग २ ९ने बंधे भंग २ ने १,१ ने १ भं. १,३ ने १,२ ५ ने १,४ ने बंधे बावीसवो बंधस्थाने पीछे लिख्या है। अंथ भंगस्वरूप-हास्य रति वा अरति शोक २ ए दो भंग पुरुषवेद साथ, एवं २ स्त्रीवेद साथ, एवं २ भंग नपुंसकवेद संघाते, एवं २२ ने बंधे भंग ६. इक्कीसेके बंधे भंग ४-अरति शोक पुरुषवेद १, हास्य रति पुरुषवेदसे बंधे २, एवं पुरुषवेद काढीने स्त्रीवेदसुं दो भंग करणा, एवं ४. नपुंसकवेदका बंध सास्वादने नही. १७ ने बंधे भंग २-हास्य रति पुरुषवेद १, अरति शोक पुरुषवेद २, एवं २, स्त्रीका बंध नही. तेराके बंधमे ए ही दो भंग जानने. छठे गुणस्थानमे ९ के बंधमे ए ही दो भंग, एवं ९ के बंधमे, आगे पिण ए ही दो भंग अने नवमेमे ५ ने बंधे एक भंग १,४ ने बंधे १ भंग, ३ ने बंधे भंग १, २ ने बंधे भंग १, अने १ ने बंधे भंग १. यद्यपि सातमे आठमे गुणस्थानमे अरति १ शोकका बंध नही है तथापि भंगनी अपेक्षा सप्ततिसूत्रमे बंध कह्या है इति अलम्१६१ | मोहके उदय- २४ | ए | २४ | १ | ० ० . . ४ भंग ९९५ । ७२ व व । १० ७४
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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