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________________ २२६ नवतत्त्वसंग्रहः सम्यक्त्वमोहनीय १, अंतके संहनन ३, एवं ४. नवमे ६ टली-हास्य १, रति १, शोक १, अरति १, भय १, जुगुप्सा १, एवं ६. दसमे ६ टली-वेद ३, संज्वलनना क्रोध १, मान १, माया १, एवं ६. ग्यारमे संज्वलना लोभ टल्या. बारमे २ संहनन टले, द्विचरम समय निद्रा १, प्रचला १ टली. तेरमे १४ टली-ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ४, अंतराय ५, एवं १४ टली, तीर्थंकरनाम मिला १. चौदमे ३० टली-असाता वा साता १, वज्रऋषभनाराच १, निर्माण १, स्थिर १, अस्थिर १, शुभ १, अशुभ १, सुस्वर १, दु:स्वर १, प्रशस्त खगति १, अप्रशस्त खगति १, औदारिकद्विक २, तैजस १, कार्मण १, संस्थान ६, वर्णचतुष्क ४, अगुरुलघु १, उपघात १, पराघात १, उच्छ्वास १, प्रत्येक १, एवं ३०. चौदमे १२ रही तिनका नाम-साता वा असाता १, मनुष्यगति १, पंचेंद्री १, सुभग १, त्रस १, बादर १, पर्याप्त १, आदेय १, यश १, तीर्थंकर १, मनुष्य-आयु १, उंच गोत्र, ए १४. १४७ | उत्तर प्रकृ- | ११७ | १११ /१०० १०४] ८७ | ८१ / ७३ | ६९ ५७ |५६ | ५४ | ३९ तिका उदी रणा १२२ पहिलेसे छठे ताइ उदयवत् उदीरणा. सातमेसे तेरमे ताइ तीन टली-वेदनीय २, मनुष्यआयु १, और सर्व उदयवत् उदीरणा जाननी. चौदमे उदीरणा 'नास्ति इत्यलम् । १४८| उत्तर प्रकृति सत्ता १४८ १४९| आकर्ष गुण-| ज. १, उ. ज. उ. १] ज. १, उ.| ए| ए | ज. १ स्थान कितनी| पृथक्त्व | घणे भवे | पृथक् | व| व उ.सं-| व | उ. ४ विरीया | सय, घणे | आश्री | सय, घणे | म् म् ख्या-म् घणे आवे? | भवे. ज. | ज. २, उ. भव ज. ज. २, र| २, उ. | ५ वार | २, उ. असंख १५० कर्मनिर्जरा असंख. → ए व म् | - व 5 - BE उ.५ वार असंखे ।। गुणी ३ ३ ३ ३ ३ ३ । हीयमान वर्धमान २ अवस्थित १५२ » | मुहूर्त सम स्थानक असंख्य - | → | ए| व | म् - → अंत-| ए१ | १| लोकप्रमाण प्रमाण १. नथी । २. आ कोष्ठक तेमज तेना स्पष्टीकरण माटे मूल प्रतिमां जग्या रखायेली छे, परंतु तेनो उपयोग ग्रन्थकारे कर्यो नथी।
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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