SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४ नवतत्त्वसंग्रहः च्यार घातीया कर्म क्षय किया, केवल ज्ञान, केवल दर्शन, यथाख्यात चारित्र, अनंत वीर्य इन करके विराजमान, योग सहित इति सयोगी. मन, वचन, काया योग रूंधीने पांच ह्रस्व अक्षर प्रमाण काल पीछे मोक्ष. (७९) आगे गुणस्थान पर नाना प्रकारके १६२ द्वार है तिनका स्वरूप यंत्रसे १ | २ | ३ | ४ | ५/६ ७ ८ ९ १० ११ १२ १३ १४ १ जीव भेद १४ | १४ | ७ | १ | २ | १ | १ | १ | १ १ १ १ १ १ १ २] योग १५ | १३ | १३ | १० | १३ | ११ | १३ | ११ ९ ९ ९ ९ ९७० ३] उपयोग १२ ५५६६६७ ७ ७ ७ ७ ७ ७२२ जीवभेदमे दूजे गुणस्थानमे बादर एकेंद्रीका भेद १ अपर्याप्त कह्या है सो इस कारण-ते एकेंद्रीमे सास्वादन सम्यक्त्व है अने सूत्रे न कही तिसका समाधान-एकेंद्रीमे सास्वादन कोइक कालमे होइ है, बहुलताइ करके नही होती, इस कारण ते सूत्रमे विवक्षा नही करी. अने कर्मग्रंथमे कोइ कालकी विवक्षा करके कह्या है. इस वास्ते विरोध नही. एह समाधान भगवतीकी वृत्तिमे कह्या है. दूजे गुणस्थानमे अपर्याप्तका भेद है ते कारण अपर्याप्ता जानने, लब्धि अपर्याप्ता तो काल करे है. अने दूजे गुणस्थाने अपर्याप्ता काल नही करे. तथा योगद्वारमे पांचमे छटे गुणस्थानमे औदारिकमिश्र योग कर्मग्रंथे न मान्यो, किस कारण ? ते तिहां वैक्रिय आहारककी प्रधानता करके तिनो ही का मिश्र मान्या, अन्यथा तो १२ तथा १४ योग जानने, परंतु गुणस्थानद्वार तो कर्मग्रंथकी अपेक्षा है, तिस वास्ते कर्मग्रंथकी अपेक्षा ही ते सर्वत्र उदाहरण जानना. तथा उपयोगद्वारमे पहिले १, दूजे गुणस्थाने ५ उपयोग कहै है सो तीन अज्ञान, चक्षु, अचक्षु दोइ दर्शन, एवं ५ उपयोग जानने. दूजे गुणस्थानमे ज्ञान मलिन है, मिथ्यात्वके अभिमुख है. अवश्य मिथ्यात्वमे जायगा, तिस कारण ते अज्ञान ही कह्या, अन्यथा तो तीन ज्ञान, तीन दर्शन जानने. अवधिदर्शन अवधिज्ञान विना न विवक्ष्यौ. इस कारण ते ५ उपयोग कहै, अन्यथा तो प्रथम गुणस्थाने ३ अज्ञान, ३ दर्शन जानने तथा तीजे गुणस्थानमे ज्ञान अंशकी विवक्षा ते तीन ज्ञान, तीन दर्शन है, अने अज्ञान अंशकी विवक्षा करे तीन अज्ञान, तीन दर्शन जानने. ४ द्रव्यलेश्या ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ३ | १ | १ १ १ १ १ . ५ भावलेश्या ६ ६ ६ ६ ६ ३ ३ ३ | १ | १ १ १ १ १ . भावलेश्या तीन-कृष्ण, नील, कापोत, एह तीन लेश्या वर्तता सम्यक्त्व न 'पडिवज्जे अने सम्यक्त्व आया पीछे तो तीनो भावलेश्या होइ है इति भगवतीवृत्तौ अने तीन अप्रशस्त भावलेश्यामे देशवृत्ती (विरति ?) सर्ववृत्ती (विरति ?) नही होइ. १. पामे.
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy