SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५६ पुद्गलपरावर्तन ७ (७३) (पुद्गलपरावर्तन) भगवती श० १२, उ० ४ ( सू० ५४० ) औदारिक १ वैक्रिय २ तैजस कार्मण ४ पुद्गल ३ २ अनंत स्तोक काल सर्वमे किस का ? थोडा पुद्गल कौनसा [कस्य ] अने बहुता कौनसा ? आ हार ३ अनंत ५ अनंत गुणा प्रारंभकालयंत्रम् ७ अनंत १ स्तोक प्रथम २ ३ ४ ५ ६ समय समय समय समय समय समय १ आ- आ- आ- आ- आ हार हार हार हार हार (७४) अथ पर्याप्तियंत्रम् सर्व पर्याप्तिका शरीर शरीर शरीर शरीर शरीर ६ अनंत गुणा इन्द्रि - इन्द्रि - इन्द्रि - इन्द्रि य य य य सासो सासो सासो समय "" समुच्चय- स्वामी १ काल स्तोक " मनपुद्गल वचनपुद्गल आनप्राण ५ ६ ७ १ स्तोक ५ अनंत ६ अनंत गुणा ७ अनंत अंतर्मुहूर्त विक ० ० संज्ञी आपंचे- हार न्द्रिय - न्द्रिय एकेन्द्रिय | लब्धिअपर्य ० समाप्तिकालयंत्रम् ० " ; ३ अनंत 1) ० o " शरीर इन्द्रि - श्वा य सो च्छू वास "1 नवतत्त्वसंग्रहः २ ३ वि- ४ ५ ६ अंस- शेष विशे- विशे- विख्य अधिष ष शेष भाषा मन 11 २ अनंत "" ० " भाषा भाषा मन 'निश्चयनयमतेन सर्व पर्याप्ति एक साथ प्रारंभे पिण व्यवहार नय मते एक समयांतर. आहार पर्याप्तिने एक समय लगे अने अन्य सर्वने अंतर्मुहूर्त कालम् पृथक् पृथक्. १. निश्चय नयना अभिप्राय अनुसार । " " ४ अनंत "2 ४ अनंत
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy