SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४८ नवतत्त्वसंग्रहः २२७ १०५२ असंख्य असंख्य वर्ग जाइये तब लोकाकाश प्रदेश आवै असंख्य असंख्य असंख्य वर्ग जाइये तब तेउकायके सर्व जीव राशि असंख्य असंख्य असंख्य वर्ग जाइये तब तेउकायकी कायस्थिति समय असंख्य असंख्य १ विरिया वर्ग कीने तब परम अवधिज्ञानका क्षेत्र आवै असंख्य असंख्य ___ असंख्य वर्ग जाइये तब स्थितिबंधके अध्यवसाय असंख्य असंख्य । असंख्य वर्ग जाइये तब अनुभागबंधके अध्यवसाय असंख्य असंख्य । असंख्य वर्ग जाइये तब निगोदके शरीर औदारिक असंख्य असंख्य असंख्य वर्ग जाइये तब निगोदकी कायस्थिति असंख्य दोहा-च्यारि ४ आठ ८ ओ पांचसे, बारह ५१२ आदि कहंत । धारा तीनो जाणिये, आगे वर्ग अनंत ॥१॥ चौपाइ-कृत धारामे वर्ग विचार, ताके घन लइये घनधार । घनाघन धारामे तस वृंद, इम भाषे सबही जिनचंद ॥१॥ दोइ २ तीन ३ अरु नौ ९ है छेद, आदि तिहुं धारा इम भेद । आगे दुगुण दुगुण सब ठाम, वरग कृति घन वृन्दो नाम ॥२।। दूने कृतिमे तिगुने घणा, नौ गुण छेद घनाघन तणा । इक इक धारा तीन प्रकार, गुण १ पुनि भाग २ अयसि ३ निहार ।।३।। छेद जोग है इस गुणकार, तस विजोग है भागाहार । निजसम थल थापीजे रास, अन्नो अन्नताको अभ्यास ॥४॥ दोहा-पहिले विरलन देय पुनि, तासौ है उत्पन्न । विरलन जाहि विषे(खे)रीये, देय उपरजो दिन्न । चौपाइ-विरलन राशि करो गुणाकार, देय छेद सौ बुद्धिविचार । . जो आवे सो छेद प्रमाण, उत्पन्न राशि इह विद्यमान ॥१॥ विरलन राशि स्थापना–४ । १ १ १ १. देय राशि स्थापना-४ ४ ४ ४ देय राशिके छेद २ सें देय राशिकू गुण्या लब्ध ८ छेद. इतने उत्पन्न राशिके २५६ छेद होय. दोहा-अर्ध अर्ध जो छेदको, कीजे सो कृति रास । अपने छेद समान ही, वर्ग होय अभ्यास ॥१॥ राशि १६, छेद ४. चौथे ठिकाणे उत्पन्न राशि १८४४७४४०७३७०९५५१६१६.
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy