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________________ १४६ नवतत्त्वसंग्रहः असंख्याते असंख्याते अनंत अनंत अनंत अनंत अनंत अनंत अनंत अनंत अनंत अनंत असंख्य वर्ग जाइये तब जघन्य युक्त अनंत आवे । १ विरिया वर्ग कीजे तब जघन्य अनंत अनंते आवे अनंतानंत वर्ग जाइये तब जीवास्तिकाय अनंतानंते वर्ग जाइये तब पुद्गलास्तिकाय अनंतानंते वर्ग जाइये तब अद्धा-काल अनंतानंते वर्ग जाइये तब सर्व आकाश श्रेणिके प्रदेश १ विरिया वर्ग कीजे तब सर्व आकाश प्रतरके प्रदेश अनंते वर्ग जाइये तब धर्मास्तिकायके पर्याय ___ अनंते वर्ग जाइये तब १ जीवके पर्याय अनंते वर्ग जाइये तब जघन्य अज्ञानके पर्याय अनंत वर्ग जाइये तब क्षायिक सम्यक्त्वके पर्याय वर्ग अनंते जाइये तब केवलज्ञान(के) पर्याय घनधारा असंख्याते अनंत अनंत अनंत अनंत अनंत अनंत अनंत अनंत अनंत अनंत अनंत वर्गशलाका छेदशलाका ८ |m| ६४ | ४०९६ M ४८ १६७७७२१६ २८१४७४९७६७१०६५६ ७९२२८१६२५१४२६४३३७५९३५४३९५०३३६ गर्भज मनुष्य ५८ अंक ११६ अंक असंख्य वर्ग जाइये तब घनांगुलके प्रदेश आवै असंख्य वर्ग जाइये तब लोकाकाश श्रेणिके प्रदेश आवै १ विरिया वर्ग कीजे तब लोकाकाश प्रतर प्रदेश आवै असंख्य असंख्य असंख्य १९२ ३८४ असंख्य असंख्य असंख्य छेदशलाका वर्गशलाका घनाघनधारा ३६ ५१२ २६२१४४ ६८७१९४७६१३६ २२ अंक ४१ अंक ८२ अंक १६४ अंक ७२ १४४ २८८ ५७६
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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