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________________ ११४ नवतत्त्वसंग्रहः हिवै पीछे कालथी क्षेत्र सूक्ष्म कह्या ते कितरमे भाग सूक्ष्म है ते वात कहीये है. प्रथम तो काल सूक्ष्म. एक चुटकी वजातां असंख्य समय वीते. तेह थकी क्षेत्र असंख्यात गुणा सूक्ष्म. एक अंगुल मात्र क्षेत्रमे जितने आकाशप्रदेश है ते समय समय एकेक काढतां असंख्याती अवसर्पिणी बीते. क्षेत्रथी द्रव्य सूक्ष्म अनंत गुणा. एकेक प्रदेशमे अनंते द्रव्य है. ते द्रव्यथी पर्याय सूक्ष्म अनंत गुणी. एकेक द्रव्यमे अनंती है. ___ अथ हिवै जदा पहिला अवधिज्ञान उपजे तदा पहिला कौनसा द्रव्य देखे ते वात कहीये है-ते पुरुष आदिकने जद पहिला अवधिज्ञान उपजे ते पहिला तैजस शरीर योग्य जे द्रव्य अने भाषा योग्य जे द्रव्य ते दोनो के विचाले जे अयोग्य द्रव्य है, ते द्रव्य कैसा है ? कुछ भारी है, कुछ हलका है ते 'गुरुलघु' कहीये अने जे भारी पिण न हुइ अने हलका पिण न हुइ ते 'अगुरुलघु' कहीये. जघन्य अवधिज्ञानना धणी गुरुलघु, अगुरुलघु ए दोनोही देखे. एक कोइ तैजस शरीरके समीप है ते गुरुलघु है अने जे भाषाद्रव्यके समीप है ते अगुरुलघु है. पीछे जे जघन्य अवधि कह्या तिसके स्वरूपके वास्ते वर्गणाका स्वरूप लिख्यते (१) द्रव्यवर्गणा, (२) क्षेत्रवर्गणा, (३) कालवर्गणा, (४) भाववर्गणा, (५) औदारिक अयोग्य वर्गणा, (६) औदारिक योग्य वर्गणा, (७) उभय अयोग्य वर्गणा, (८) वैक्रिय योग्य वर्गणा, (९) उभय अयोग्य वर्गणा, (१०) आहारक योग्य वर्गणा, (११) उभय अयोग्य वर्गणा, (१२) तैजस योग्य वर्गणा, (१३) उभय अयोग्य वर्गणा, (१४) भाषा योग्य वर्गणा, (१५) उभय अयोग्य वर्गणा, (१६) आनप्राण योग्य वर्गणा, (१७) उभय अयोग्य वर्गणा, (१८) मन योग्य वर्गणा, (१९) उभय अयोग्य वर्गणा, (२०) कर्म योग्य वर्गणा, (२१) ध्रुव वर्गणा, (२२) योग्य ध्रुव वर्गणा, (२३) अयोग्य ध्रुववर्गणा, (२४) अध्रुववर्गणा, (२५) शून्यतरवर्गणा, (२६) अशून्यतरवर्गणा, (२७) ध्रुवानंतरवर्गणा, (२८) तनुवर्गणा, (२९) मिश्र स्कंध, (३०) अचित्त महास्कंध. __ अथ वर्गणा स्वरूप-इह लोक सर्व अलोक लग पुद्गले करी भर्या है. ते पुद्गल किम किम है ते कहीये है. पुद्गलकी न्यारी न्यारी वर्गणा है. 'वर्गणा' शब्दे सरीषा सरीषा द्रव्यना थोकडा कहीए. ते वर्गणा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावथी चार प्रकारे है. ते किम ? एक परमाणु एकला इम जितना परमाणुया है तेहनी एक वर्गणा जाननी. दो दो परमाणु मिल रहे है तेहनी दूजी वर्गणा. इम तीन तीननी तीजी. एवं चार चारनी. इम संख्याते परमाणुये, असंख्य परमाणुये, अनंत परमाणुये तेहनी न्यारी न्यारी वर्गणा जाननी. इम द्रव्यवर्गणा अनंती होय है. इति द्रव्यवर्गणा. अथ क्षेत्र आश्री जे परमाणुया अथवा मोटा द्रव्य एके आकाशप्रदेशे रह्या ते सर्वनी एक वर्गणा. एम दो प्रदेशे रह्यानी दूजी वर्गणा. इम तां लगे लेना जां लग असंख्य प्रदेश व्यापे. तेहनी न्यारी न्यारी वर्गणा क्षेत्र आश्री असंख्याती हुइ है. तथा काल आश्री ते एक परमाणु, दो परमाणु एवं तीन, चार, संख्याते, असंख्याते, अनंते परमाणु एकठे मिले रहे है. इनमे जितन्याकी एक समयकी स्थिति है तिन सर्वकी
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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