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________________ नवतत्त्वसंग्रहः जीव अपढम अपढम पढम | पढम ला पढम अपढम पढम अपढम पढम | अपढम पढम ७ २४ दंडके पढम पढम | ० | " अपढम सिद्धानाम् पढम पढम | पढम | पढम | पढम | ० जिसकू एक समय उपज्या हूया है सो 'अप्रदेशी' जानना अने जिसकू द्वि आदि समय अनंत पर्यंत हूये है सो 'सप्रदेशी' जानना. इन चारो यंत्रो में जिस दंडकमें जो बोल है तिसकी अपेक्षा जानना अपनी विचारसें. अथ प्रथम अप्रथम का लक्षण-जिसने जो भाव पहिले पाम्या सो 'प्रथम,' जिसने द्वि आदि वार पाम्या सो 'अप्रथम'. अथ चरमअचरम लक्षण गाथा "जो जं पावहिति पुणो भावं सो तेण अचरिमे होइ (अचरिमो होंति ?) । ___ अच्चंतविओगो जस्स जेण भावेण सो चरिमो ॥" "जीवाहारग १-२ भव ३ सण्णी ४ लेसा ५ दिट्ठि ६ य संजय ७ कसाए ८ । णाणे ९ जोगुवओगे १०-११ वेए १२ य सरीर १३ पज्जत्ती १४॥" ए मूल गाथा (पृ० ७३३) । (३१) भगवती श० ३०, उ० १ (सू० ९९८) सम्यक्त्वे १ वाद मिश्रे २ वाद | मिथ्यात्वे ३ वाद ओघिके ४ वाद जीव | अलेशी १ सम्यग्दृष्टि सम्यग्- | कृष्णपक्षी १ | सलेशी प्रमुख ७ शुक्लपक्षी ८ संज्ञा मनुष्य २ | २ समुच्चयज्ञानी ३ । मिथ्यादृष्टि मिथ्यादृष्टि २ |४।१२ सवेदी १३ स्त्री पुरुष नपुंसक ४६ यावत् केवलज्ञानी अज्ञानी ३ मति- १६ सकषायी क्रोधादि प्रमुख पांच ८ नोसंज्ञोपयुक्त ९ श्रुत अज्ञानी ४-५/ २१ उपयोग दो २३ सयोगी प्रमुख अवेदी १० अकषायी विभंगज्ञानी ६ ४, एवं सर्व बोल २७ हूये । ११ अयोगी १२ पंचेन्द्री | ३९ | सम्यग्दृष्टि १ कृष्णपक्षी आदि सलेशी प्रमुख उपरला २७ तिर्यंच ज्ञानी २ मति उपरला ६ बोल बोल जानना ज्ञानादि ३, एवं बोल ५. भवनपति | ३६ ए २७ माहिथी पद्म १ शुक्ल २ व्यंतर लेश्या नपुंसकवेद ३, ए ३ वरजीने शेष बोल २४ तेजो १ पद्म २ शुक्ल ३ स्त्रीवेद १ पुरुषवेद २, ए ५ वरजी शेष बोल बावीस २२ नरक | ३४
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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