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________________ चंद्र प्रज्ञाप्त अने व्याख्या प्रज्ञप्ति आ छ ग्रंथ पण ए आचार्ये रचेला छे, ने हजु सुधी प्रकट थया नथी. __ श्री अमितगतिजीए आ धर्मपरिक्षा ग्रंथ विक्रम संवत १०७० मां बनाव्यो छे तथा श्रावकाचार अने सुभाषित रत्नसंदोह संवत १९५० मां बनाव्या छे. ए समयमां धारानगरीमां राजा मुंज राज्य करता हता. सांभळवामां आवे छे के, महाराजा मुंजनी सभामां ९ रत्न हता जेमां एक श्री अमितगति पण हता. आ समयमां भट्टारकोनी उत्पत्ति थइ नहोती. आ आचार्य काष्टासंघना माथुर सांप्रदायिक पट्ट उपर थई गएला छे. आ संस्कृत ग्रंथनी श्लोक संख्या १९४९ छे जे दरेकनो छुटो सरल गुजराती भाषामां अर्थ आ ग्रंथमां आपवामां आवेलो छे. आचार्यश्रीए आ ग्रंथ मात्र बे महिनामां बनाव्यो हतो, जेथी कविनी काव्यरचना शक्ति केटली जबरी हती ते समजाय छे. आ ग्रंथमां कविए जैनथी बीजा धर्मनो इतिहास अने अन्य धर्मनी समजुती अनुमान प्रमाणथी सत्पनी कसोटी उपर केटली बबी उतारी छे ते दर्शाव्युं छे, जेथी कविने अन्य धर्मनुं पण केटलं बधु घाडुं ज्ञान हतुं ते स्पष्ट जणाय छे. आ ग्रंथमां रचेली कथानुं संविधानक घणुं मनोवेधक छे, जेमा मुख्य कथा एवी रीते छे के, जीनधर्मी मनोवेगे मिथ्याधर्मी पवनवेगने उपदेश करवानें कडं अने पछी पोते कथा कही तेने वार्ताना रसमां सचोट उतारी अन्य धर्मीय सिद्धांत मिथ्या छे अने जैनधर्मी सिद्धांत खरा छे एम बरावर समजावी ते पवनवेगने छेवटे मिथ्याधर्ममा च्युत करी जैनधर्मी बनाव्यो छे अने तेनी पासे सम्यक्व ग्रहण कराव्युं छे. आ ग्रंथ एटलों बोधदायक अने रसीलो छे के
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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