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________________ अने नीच थाय छे ॥ ४० ॥ धर्म मनोवांछित भोग धन अने मोक्ष ने आपवावालो छे, अने पाप ए सघळानो नाश करवावाळु सघळा अनर्थोनी खाण छे ॥ ४ १ ॥ ज्ञानी अज्ञानी सघळा माणस कहे छे के आ संसारमा जे कई भलुं छे ते तो धर्मथी थाय छे अने बूलं (अनिष्ट)छे ते पापथी थाय छे.आ नियम जगतमा प्रख्यात छ ।॥४२॥ आ प्रमाणे प्रत्यक्ष धर्भ अधर्मनुं फळ जाणीने बुद्धिमान पुरुषो अधर्मनो हमेशा त्याग करीने सदैव धर्माचरणज करता रहेछे ॥ ४३ ॥ अने नीच छे तेओ आ जन्मने माटे एवं कंइ अकर्म करे छे के जेनाथी तेओ लाखो भवमां अनेक प्रकारनों दुःख भोगवे छे ॥ ४ ४ ॥ . असह्य दुःखोने वधारवावाला विषयरुपी मदिराथी मोहित थयेला कुटिल माणसो आजकालना [ मात्र बे दिवसना ] जीवनमां पण पाप कार्यो करे छे ॥ ४५ ॥ आ क्षणभंगुर संसारमां एवी कोइ पण वस्तु नथी के जे सुखदायक, साथेआववावाळी, पवित्र, स्वाधिन अने आविनश्वर होय ॥ ४६ ॥ केमके तरुण अवस्था तो घडपणथी भक्षित छे, आयु मृत्युवडे अने संपत्ति विपत्तिवडे भक्षित छे. निरुपद्रव एक मात्र पुरुषोनी तृष्णाज छे ॥४७॥आ प्राणी चाहे पर्वतपर चढे, चाहे पाताळमां पेसी जाय, चाहे पृथ्वि मात्रमा भ्रमण करतो रहे, परंतु काळ (मृत्यु) तो कोई जग्याए पण छोडतो नथी ॥ ४८ ॥ काळरुपी मदान्मत हाथीने आवतो रोकवाने माटे, सज्जन, माता, पिता, स्त्री, बहन, भाई, पुत्र वगेरे कोई पण समर्थ नथी ॥ ४९ ॥ काळरुपी राक्षसवडे भक्षण थता जीवनी रक्षा करवाने हाथी, घोडा,स्थ, पायदळ,एनाथी आतिपुष्ट चार प्रकारनी सेनापणसमर्थनथी॥ ५० ॥ क्रोधीत थएलो यमरुपी सर्प दान, पुजा, मिताहार [ ऊनोदरतप] मंत्र तंत्र अने
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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