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________________ स्वर्गनी देवांगनाओने पण जीते तेवी हती ॥ ६२ ॥ ग्रन्थकर्ता कहे छे के से नगरीने जोईने महानिधानना अधिपतिपणानो गर्व राखवावाला कुबेर पण पोताना हृदयमां दुर्निवार लज्जाने प्राप्त थाय छे, एवी नगरीनुं वर्णन केवी रीते थई शके ? ॥ ६३ ॥ ___ए नगरीनी उत्तर दिशामां परस्पर विरोध राखवावाला जीवोथी भरेलु सघळी दिशाओने उद्योत करवावालुं एक मनोहर वन सत्पुरुषोनी माफक तरत फल आपवावाळु तथा तृप्त कर्या छे सघळा प्राणीओना समूह नेणे एवं, अने सघळी ऋतु संबंधी देखाय छे विचित्र शोभा जेने एवं समस्त इन्द्रियोने आनंद आपवावाला अने मनने अतिशय प्रिय एवा जीवोनी माफक अनेक महाफलोथी शोभायमान छे ॥ ६४-६५ ॥ ए वनमा मनुष्य देवो अने विद्याधरो वडे उपासित, केवल ज्ञानी, नष्ट कयों छे घातिया कर्म नेणे, संसार समुने तरवाने नौका समान, बहु ऊंचा स्फटिकमयी सिंहासन उपर बिराजमान, प्रफुल्लित किरणोना समूह वडे चन्द्रमानी माफक मुनिओवडे सेवित, पोताना यशरुपी पुंजने प्रकाश करता एक मोटा मुनिराज जोया ॥ ६६-६७ ॥ त्रण भुवनना ईन्द्रोथी वंदनीय एवा मुनिश्वरने जोईने जे प्रमाणे धूळने हरण करवावाळा मेघने जोई अथवा घणा वखतथी विखूटा थयला प्रिय मित्रने जोईने आनंद थाय छे, ते प्रमाणे मनोवेगने वणो आनंद थयो ॥ ६८ ॥ ए पछी मनोवेगे मुनिमहाराजनां चरणोनां दर्शन माटे घणा उत्सुक थईने आकाशथी उतरीने इन्द्रनी माफक वनमा प्रवेश कर्यो, ए मनोवेग कृती कहिये पंडित छे, अने फेलायली छे रत्नोनी ज्वाला जेमांथी एवा मुगटवडे अत्यंत शोभायमान छे ॥ ६९ ॥ प्रमाण राहत छे श्रुत अवधि कोरे ज्ञानना भेद जेने,
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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