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________________ २२१ औषध खाती वखते दुःखदायक छे परंतु परिणामे वांछित मुख आपे छे, ते प्रमाणे मारूं कहेलुं कठोर वाक्य ( शास्त्र ) भविष्यमा निश्चय करीने सुखदायक थशे ॥ १४ ॥ हे विद्वान माणसो ! मारा कहेला आ ग्रंथने विचार करीने ग्रहण करशो तो निश्चय करीने पोते पोतानी मेळेज आ शुभाशुभपणाने जाणी जशो. जोके निवेदन करवाथी सेंकडो मनुष्य रसने जाणी जाय छे, परंतु तेना स्पष्ट अनुभव ( स्वाद ) ने कदापि भोगत्रता नथी ॥ १५ ॥ जेना हृदयरूपी मांदरमां मिथ्यात्वरूपी अंधकारनो नाश करवावाळो जिनेंद्र मतरूपी दिवो बळे छे, तेज पुरुष विद्वानोए मानेला वस्तुना निर्दोष स्वरूपने जाणे छे. तथा तेज पुरुष सघळा कलंकनो नाश करनारी उज्वल कीर्तिने पामे छे ॥ १६ ॥ जे पुरुष पोताना अने पारकाना मतनुं तत्त्व देखाडनारा पवित्र शास्त्रने भक्ति पूर्वक कहे छे, अथवा एकचित्त थईने सांभळे छे, ते पुरुष सघळां तखोने जाणीने केवलज्ञानज छे नेत्र जेजें, एवा देवोवडे पूजनीय पदने प्राप्त थईने मोक्ष लक्ष्मिने प्राप्त थाय छे ॥ १७ ॥ आखरे आचार्य आशिर्वाद आपे छे के, जगतमां निरंतर सुखने आपनारो जैनधर्म विनरहित थाओ, लोकोमा शान्ति रहो, राजालोक न्यायथी पृथ्वीन पालन करो, अने साधुजन यमनियमरूपी बाणोथी कर्मरूपी शत्रओनो नाश करीने मोक्षने प्राप्त थाओ. अने सघळा प्राणीमात्र मिथ्याज्ञाननो नाश करीने पोताना हितमां लवलीन थाओं ॥ १८ ॥ जेटला दिवस सुधी निर्मल जळवाली, मीनज छे नेत्र जेनां तथा उच्च शद करवावाळी नदीरूपी स्त्रीओ पोताना लहेररूपी हाथथी समुद्ररुपी भरतारने आलिंगन करशे, तेटला दिवससूधी धर्माध
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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