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________________ १८८ कर्या करे छे, माटे तमे आ दिगंबर वेपथी फलादिकनो आहार करशो तो ठीक थशे नहि ॥ ५० ॥ आ प्रमाणे देवतानुं वचन सांभळीने ते सघळा, राजा व्याकुलाचि-त थई लंगोट धारण करीने खाडा अथवा नदिओनुं पाणी पीत्रा लाग्या ॥ ५१ ॥ एमांथी केटलाक राजा तो भूख तरसथी दुखी थई लज्जा छोडीने पोत पोताने घेर चाल्या गया, केमके ज्यां सूधी मनुष्यनुं चित्त दूषित न होय त्यां सूधीज ते लज्जा वान रहे छे ॥ ५२ ॥ केटलाक राजाओए एवो विचार कर्यो के - जो आप - णे भगवानने वनमां छोडीने चाल्या जइशुं तो भगवानना पुत्र भरतचक्रवर्त गुस्से थईने अमारी वृत्ति छिनवी लेशे, त्यारे तो भिक्षाटन करवुं पडशे, माटे एनाथी तो भगवाननी सेवा करतां आ वनमा रहेवुज श्रेष्ठ छे. आ प्रमाणे विचार करीने ते सघळा राजा कंदमूलादिक भक्षण करीने त्यांज रहेवा लाग्या, पोत पोताने घेर गया नहि || ५३ - ५४ ॥ ते पछी कच्छ महाकच्छ राजाए पोताना पांडित्यना गर्वथी फलमूलादि भक्षण करवंज तापसीय धर्म छे एवं बतात्रीने प्रचार कय ॥ ५५ ॥ अने मरीचिकुमारे सांख्यमतनी प्ररूपणा करीने पोताना कपिलादी शिष्योने उपदेश कर्यो ॥ ५६ ॥ एज प्रमाणे बाजा राजाओए पण पोताना पांडित्यना गर्वथी पोतानी मरजी प्रमाणे १८० प्रकारना क्रियावादी, ८४ प्रकारना अक्रिया वादी ६७ प्रकारना अज्ञानी अने ३२ प्रकारना वैनयिक एवा ३६३ प्रकारा महामिथ्यात्वने वधावावाळा पाखंड मत चलाव्या ।। ५७-५८ ।। एमांथी शुक्र अमे ब्रहस्पति नामना बे राजाओए मळीने स्वेच्छा पूर्वक पोतानी इन्द्रिओनुं पोषण करतां चार्वाक दर्शननी प्रवृत्ति करी ॥ १९ ॥ आ प्रमाणे ते राजाओए अनेक प्रकारनी वीटंबणा करी, माटे
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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