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________________ १८६ छे अने रात दिवस पण जता आत्रता रहे छे, परंतु नदिना जलनी माफक गयलुं योवन कदी आवतुं नथी ॥ ३१ ॥ भाई बंधुओनो संयोग तो मार्गमां अथवा धर्मशालामां मळता मुसाफरना जेवो छे, मित्रानो स्नेह विजळीना चमकारा जेवो आस्थिर छे || ३२ || अने पुत्र मित्र घर, द्रव्य, धन धान्यादि संपदानी प्राप्ति स्वप्नना जेवी माथा छे. कदी स्थिर रही शकती नथी ॥ ३३ ॥ जेने माटे मोटां पाप करीने द्रव्यादिकनो संग्रह करवामां आवे छे, ते जीवन शरद रूतुना बादलनी माफक जलदी नाश पामे छे ॥ ३४ ॥ आ दुखदायक संसारमां एवो कोई पण जीव देखातो नथी के जे जगतमां फरवावाळा काल मृत्युना मुखमां न पडतो होय || ३५ ॥ आ संसारमां जीवोने एकमात्र रत्नत्रय सिवाय कोई पण आत्मीय कल्याण करे तेवुं नथी ॥ ३६ ॥ आ प्रमाणे विचार करीने जिनेंद्र भगवाने घेरथी बहार नीकळत्रानो विचार कर्यो, ते ठीकज छेके संसारनी असारता जाणवाबाळा घरमा केम रही शके ? ॥ ३७ ॥ ते पछी तेओ पोतानी मेळे आवयावाळी निर्दोष सिद्ध भूमिने लाववा जता होय तेम देवोए लावेली पोताथी शणगारेली पालखीमां बेसीने वनमां चाल्या गया ॥ ३८ ॥ ते पालखी पहेला तो राजाओंएं ऊंचकी अने पछी देवताओए ऊंचकी. ते ठीक छे के बुद्धिमान पुरुष सघळा प्रकारना धर्मकार्योंमां सामेल थाय छे ॥ ३९ ॥ ते पछी शकटामुख वनमां भगवाने एक वडना झाडनी नीचे पर्यंकासन बेसीने सवळां वस्त्राभूषण उतार्या अने सिने नमस्कार करीने मजबूत पांच मुट्ठिओथी पोताना केश उखेडी नांख्या ( पंचमुष्टि लोच कर्यो ) ॥ ४०-४१ ॥ ते पछी सघळा जीवोने कल्याण
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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