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________________ १७१ केवीरीते प्राप्त थया! ॥ ८२ ॥ जे तपस्विओए महादेवजीने पण मोटो श्राप दीधो, ते तपास्त्र कामदेवना बाणोद्वारा केवगिते घायल थता रह्या? शुं कामदेवने श्राप दईने भस्म करी शक्या नहि? ॥ ८३ ॥ ने देव त्रण जगतना कर्ता हर्ता विधाता छे अने जेने देवताओ नमस्कार करे छे,ते त्रण महापुरूषोने (ब्रह्मा, विष्णु, महेशने) कामदेवे केवीरीते जीती लोधा? ॥ ८४ ॥ अने ने कामदेवे सघळा देवोने जीतीने अतिशय दुःखीत कर्या, ते कामने महादेवे पोताना त्रीजा नेत्रथी केवारीते भस्म करी दीधो ?॥८५॥ जे देव पोते राग, द्वेष, मोहादिक १८ दोषोने वशीभूत थई दुःख भोगवे छे, ते देव धर्मार्थी पुरुषोने हितकारी धर्मनो उपदेश केवीरीते करी शके ॥ ८६ ॥ हे मित्र! जेने सेवन करीने संसारी जीव मोक्षपदने प्राप्त थई शके एवा निर्दोष देव धर्म गुरु कोई मतमां पण जोवामां आवता नथी ॥ ८७ ॥ रागीदेव परीग्रही गुरु अने हिंसामय धर्म सेवन करेला जीवोनी मनोवांछित सिद्धिने अतिशय दुर्लभ करे छे ॥ ८८ ॥ मूढ माणसज आ प्रमाणेनी मिथ्यात्वरुप बुध्धि पोतानी सुखसमृधिने माटे करे छे, ते ठीकज छ, केमकेनष्ट थयली छे बुद्धि जेनी एवा मूढ शुं नथी करता ? ॥ ८९ ॥ वध्यानो पुत्र तो राजा अने पत्थरनो पुत्र मंत्री ए बने मृगतृष्णाना नळमां स्नान करीने लक्ष्मीने सेवन करे छे. भावार्थ-जे लोक रागी द्वेषी देव परीग्रहधारी गुरु अने हिंसामय धर्मने सेवन करीने सुखसपत्तीनी इच्छा करेछे, ते लोक वन्ध्या पुत्र अने पत्थर पुत्र समान छे ॥ ९ ॥ ने रागद्वेष मद मोह विद्वेषादिक सघळा सुरनरेश्वरोने जीती लीधा, एवा दोष सूर्यमां अंध
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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